दंगा पीडि़तों की संपत्ति वापस कराने को समिति गठित
राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में गठित न्यायमूर्ति एनएन सिंह न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि भागलपुर दंगे के बाद दंगा पीडि़तों को भयाक्रांत व आतंकित कर कौडिय़ों के दाम उनकी चल व अचल परिसंपत्ति की खरीद-बिक्री करने और कराने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
पटना [राजीव रंजन]। बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर 25 साल पहले हुए भागलपुर सांप्रदायिक दंगे का जिन्न बंद बोतल से बाहर आने वाला है। राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में गठित न्यायमूर्ति एनएन सिंह न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भागलपुर दंगे के बाद दंगा पीडि़तों को भयाक्रांत व आतंकित कर कौडिय़ों के दाम उनकी चल व अचल परिसंपत्ति की खरीद-बिक्री करने और कराने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
न्यायिक जांच आयोग ने ऐसे कुल 85 दंगा पीडि़तों को चिन्हित किया है जिन्हें चल व अचल संपत्ति को औने-पौने में बेचने को मजबूर किया गया था। गुरुवार को राज्य मंत्रिमंडल ने भागलपुर सांप्रदायिक दंगा की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति एनएन सिंह न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट और सिफारिशों की कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्वीकार कर लिया है।
आयोग की जांच रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों पर सरकार के 'एक्शन टेकेन रिपोर्ट' को बिहार विधानमंडल के मॉनसून सत्र के दौरान दोनों सदनों के पटल पर रखने के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार के आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भागलपुर दंगा खत्म होने के बाद दंगा पीडि़तों की चल एवं अचल संपत्ति को दंगाइयों ने या तो लूट लिया या फिर उन्हें भयाक्रांत कर उनकी जमीन, मकान और खेती योग्य जमीन को तब के बाजार मूल्य से कई गुना कम कीमत पर बेचने को मजबूर कर दिया गया।
राज्य सरकार ने दंगाइयों के दबाव में आकर अपनी परिसंपत्ति को निर्धारित कीमत से काफी कम में बेचने की शिकायतों को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस समिति में राज्य के पुलिस महानिदेशक, गृह, विधि एवं राजस्व व भूमि सुधार विभागों के प्रधान सचिवों अथवा सचिवों को बतौर सदस्य शामिल किया है।
यह समिति आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकार को अपनी कार्ययोजना प्रस्तावित करेगी। सूत्र बताते हैं कि राज्य सरकार आज से करीब 20-25 साल पहले रजिस्ट्री किए गए दंगा पीडि़तों की जमीन और मकान वापस दिलाने के लिए विधानमंडल में एक विधेयक लाने की तैयारी में है जिससे दंगा पीडि़तों के संपत्ति की रजिस्ट्री को रद किया जा सके।
फिलहाल राज्य में रजिस्ट्री को रद करने का कोई कानून नहीं है। सूत्र बताते हैं कि इन कार्रवाइयों के पीछे राज्य सरकार का मकसद है कि दंगा के दोषी पदाधिकारियों को दंडित करने के साथ-साथ दंगा पीडि़तों को उनकी खोई हुई संपत्ति पर फिर से अधिकार दिलाना जा सके।
बता दें कि नीतीश कुमार की सरकार ने वर्ष 2006 के फरवरी में न्यायमूर्ति एनएन सिंह की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था। नौ वर्षों तक लगातार जांच करने के बाद इस आयोग ने विगत 28 फरवरी को ही राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट और अनुशंसाएं सौंपी थी। आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के करीब पांच महीने बाद बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर उसकी अनुशंसाओं पर सरकार ने संज्ञान लिया है।