'चंद रोज और मेरी जान' में दिखी फैज और ऐलिस की कहानी
अर्थशिला की ओर से अधिवेशन भवन में कलाकारों के अभिनय को मिली सराहना। पटना - कहते
- अर्थशिला की ओर से अधिवेशन भवन में कलाकारों के अभिनय को मिली सराहना
पटना - कहते हैं कि कविताओं को जिए बिना उन्हें रचा नहीं जा सकता। कविताएं परवान चढ़ती हैं खलिश और मोहब्बत की सोहबत में। इस सच का मुजाहिरा शायर फैज और ऐलिस से बेहतर कौन समझ सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप के विख्यात पंजाबी शायर फैज अहमद फैज ने अपनी कविताओं और शायरी से न केवल देश बल्कि विदेश में अपनी पहचान बनाई। साथ ही लोगों के दिलों पर भी राज किया। फैज ने अपनी महबूबा ऐलिस से उतना ही प्रेम किया जितना की अपनी शायरी से। जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच अपनी प्रेमिका को खत के माध्यम से हर स्थितियों से रूबरू कराते रहे। फैज और एलिस के बीच लिखे गए खतों में छिपे संदेशों को कलाकार सलीमा रजा और बनबारी तनेजा ने अपने नाट्य अभिनय से दर्शकों को फैज की याद दिला दी। अर्थशिला की ओर से आयोजित 'चंद रोज और मेरी जान' कार्यक्रम के माध्यम अधिवेशन भवन में बैठे दर्शक कार्यक्रम का आनंद उठाया।
बेहतर अभिनय से कलाकारों ने जीता दर्शकों का दिल - सलीमा रजा और बनवारी तनेजा ने अपने अभिनय से लोगों को दिल जीता। रजा ने फैज की लिखी कविता 'बोल कि लब आजाद है तेरे, बोल जबां अब तक तेरी है तेरा सुतवां जिस्म है बोल कि जां अब तक तेरी है' आदि कविताओं के माध्यम से अभिनय कर फैज और एलिस की प्रेम कहानी को दर्शकों के बीच जवां कर दिया। कलाकारों ने फैज की जेल यात्रा, देश की स्थिति, जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच एक दूसरे के प्रति प्रेम आदि को अभिनय के माध्यम से पेश कर कार्यक्रम में चार-चांद लगा दिए। सलीमा रजा द्वारा निर्देशित नाटक को दर्शकों ने खूब सराहा। प्रकाश परिकल्पना रंजन बासू, संगीत तारीक हमीद एवं रोचना मोरे का सहयोग मिला। मौके पर अर्थशिला के आनंद प्रधान, पद्मश्री गजेन्द्र नारायण सिंह, आलोक धन्वा आदि कई गणमान्य मौजूद थे।