नीतीश की काबिलियत का इम्तिहान लेंगी चुनौतियां
'लीडरशिप इमर्ज करती है', यह कहावत पुरानी है। नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री भर थे। न राष्ट्रीय अध्यक्ष, न प्रदेश अध्यक्ष, न इस तरह की जिम्मेदारी का दूसरा कोई पद।
पटना (नवीन कुमार मिश्र)। 'लीडरशिप इमर्ज करती है', यह कहावत पुरानी है। नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री भर थे। न राष्ट्रीय अध्यक्ष, न प्रदेश अध्यक्ष, न इस तरह की जिम्मेदारी का दूसरा कोई पद। जब लगा कि उनके ही बनाए मुख्यमंत्री बेलगाम हो रहे हैं तो अपने आवास पर प्रशिक्षण शिविर के बहाने मंत्रियों, विधायकों, पार्टी पदाधिकारियों की बैठक करते रहे। उनके आवास पर जुटने वाली भीड़ ने संदेश दे दिया। वे सर्वमान्य नेता हैं। सरकार बनाने के सवाल पर राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक सहयोगी पार्टी के नेता साथ थे। जनता परिवार के विलय के मौके पर भी नीतीश का चेहरा ही आगे।
दरअसल, नीतीश एक चेहरा हैं। रविवार को राजभवन में उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी। साढ़े आठ साल तक पूरे दम-खम के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद बीते लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद नैतिकता के आधार पर उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया। राजनीति में इस तरह की उदारता के अपने मायने हैं। सोशल इंजीनियरिंग में माहिर माने जाने वाले नीतीश कुमार ने शांतिपूर्ण तरीके से महादलित का अपना वोट बैंक खड़ा किया। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी तो इसी समुदाय से आने वाले जीतन राम मांझी को उत्तराधिकारी बना दिया। मांझी की महत्वाकांक्षा ने बाद में नीतीश कुमार को एहसास कराया कि उनका फैसला गलत था। सरकार के साथ पार्टी भी हाथ से सरकती दिखने लगी। तब नए सिरे से उन्होंने मोर्चा संभाला। नीतीश के करीबी मानते हैं कि वजह पार्टी और सुशासन का दर्द था।
तथाकथित आतंक राज के खिलाफ और न्याय के साथ विकास के नारे के साथ वे सत्ता में आए। रिश्ते और शासन के बिगडऩे में वक्त नहीं लगते। बनाने में जमाना गुजर जाता है। नीतीश के कुर्सी संभालने के बाद कानून-व्यवस्था की हालत में सुधार को स्वीकारने में उनके विरोधियों को भी गुरेज नहीं। स्पीडी ट्रायल से अपराधियों की लगाम कसने, सेवा के अधिकार, स्पेशल कोर्ट एक्ट के जरिए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की कवायद, खटारा सड़कों को चमकदार सड़कों में बदलना। राज्य के किसी भी हिस्से से 6 घंटे में पटना पहुंचने का टास्क, ग्रामीण सड़कों को जोडऩा बहुत काम हुआ। सड़कों ने न केवल अर्थव्यवस्था में बदलाव लाया, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी सड़कों, कानून-व्यवस्था और स्पीडी ट्रायल को लेकर संदेश गया। खुद से लेकर जिलों में निचले स्तर तक नियमित जनता दरबार ने आम आदमी में भरोसा पैदा किया। फरियादें सुनी जाने लगीं। अस्पतालों में दवाएं मिलने लगीं। स्थानीय निकायों में पिछड़ों को आरक्षण और आधी आबादी को आधा आरक्षण जैसे क्रांतिकारी कदम उठाए, तो छात्राओं को साइकिल की योजना ने ग्रामीण इलाकों में बड़ी क्रांति लाई। जिलों में जहां बिजली का दर्शन नहीं होता था, 18-20 घंटे तक बिजली की व्यवस्था कायम की गई। कृषि रोड मैप से लेकर विभिन्न स्तरों पर व्यापक काम हुए।
दरअसल, नीतीश टेक्नोक्रट सीएम या कहें सीईओ के रूप में काम करते रहे। दस से लेकर 15-15 घंटे लगातार बैठकें कर सरकारी कामों का निबटारा। चुनौतियों को अवसर में बदलने का हुनर... और इन सबसे बढ़कर बिहार की ब्रांडिंग की, बेहतर चेहरा परोसा।
नीतीश कुमार खुद मानते हैं कि उत्तराधिकारी के चयन में उनसे गलती हो गई। बहरहाल खराब कानून-व्यवस्था को लेकर बिहार की फिर से चर्चा शुरू हो गई। दूसरे मोर्चे पर भी बिहार की आलोचना शुरू है। विधानसभा चुनाव में जब सिर्फ आठ माह शेष रह गए हों, ऐसे समय में मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी चुनौती से कम नहीं। कानून-व्यवस्था, शासन-व्यवस्था दुरुस्त करने, अधिकारियों पर नियंत्रण रखने से लेकर अपनी पार्टी को भी ठीक रखना होगा। जीतन राम मांझी के जाने से उनके वोट बैंक में ठीक-ठाक सेंध लग गई है। उसे ठीक करने की चुनौती है, तो लालू फैक्टर भी है। उसी लालू के शासन के विरोध में 2005 में चुनाव जीत कर आए थे। राजनीतिक मजबूरी ने एक साथ ला खड़ा किया है। देखना यह कि इंजीनियरी की पढ़ाई करने वाले नीतीश इन नई चुनौतियों से निपटने के लिए कौन सी इंजीनियरिंग करते हैं। अभी जनता परिवार के विलय का टास्क भी शेष है।