सदन की कार्यवाही देख बच्चे बोले- ऐसा तो हम लोग भी नहीं करते
बेहद रोचक दृश्य था। खूब शोर-शराबा...नारेबाजी और फिर हंगामा, यह दृश्य सोमवार को बिहार विधानसभा की प्रथम पाली में था। सदन की कार्यवाही देख रहे स्कूली बच्चे हंस रहे थे।
पटना (दीनानाथ साहनी)। बेहद रोचक दृश्य था। खूब शोर-शराबा...नारेबाजी और फिर हंगामा, यह दृश्य सोमवार को बिहार विधानसभा की प्रथम पाली में था। सदन की कार्यवाही देख रहे स्कूली बच्चे हंस रहे थे। सदन की ऊपरी दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चों में कौतूहल था। सदन में हंगामा देख नेताओं के प्रति आकर्षण खत्म होता दिखा। हंगामा देख अधिकांश बच्चों की टिप्पणी रही, वे नेता बनना नहीं चाहते। बच्चों के मन की भावना को भांप विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी सदन में हंगामा कर रहे माननीयों से आग्रह करने लगे-'माननीय सदस्यगण, बच्चे देख रहे हैं। पूर्वी चंपारण के स्कूल के बच्चे आए हैं। बच्चियां भी हैं। क्या कहेंगे? रिकार्डिंग हो रही है। राज्य की साढ़े ग्यारह करोड़ जनता देख रही है। सदन की गरिमा व मर्यादा का ख्याल रखकर आप लोग शांत हो जाएं। अपनी-अपनी सीटों पर जाएं...'
मगर अध्यक्ष के आग्रह का सदन में उल्टा असर दिख रहा था। विपक्ष, खासकर भाजपा के सदस्यों ने इसे मानो अपनी ताकत मान लिया था। अध्यक्ष के आग्रह पर उनके नारे व शोर-शराबे की आवाज और तेज, तल्ख हो रही थी। बच्चे सबकुछ देख रहे थे। एक-दूसरे का चेहरे देखकर मुस्करा रहे थे। कुछ बच्चे ठहाके लगा रहे थे। बच्चों को बड़ा दिलचस्प और खराब अनुभव रहा। एकाध को छोड़ सभी बच्चों ने कहा कि वे नेता नहीं बनना चाहते हैं। बच्चों या जनता का हवाला देकर सदस्यों को शांत कराने का अध्यक्ष का तरीका बेकार गया। भाजपा के सदस्य बिगड़ती विधि-व्यवस्था, बढ़ते अपराध और छात्रों पर हुए लाठीचार्ज को लेकर वेल में आकर नारेबाजी कर रहे थे।
खास नारे थे-निकम्मी सरकार नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है। लाठी-गोली की सरकार इस्तीफा दो-इस्तीफा दो। उनके हाथों में नारे लिखी तख्तियां भी थीं। अध्यक्ष सदस्यों को शांति बनाए रखने का लगातार आग्रह करते रहे, कार्यवाही देख रहे बच्चों का हवाला देते रहे। वे कार्य संचालन नियमावली का हवाला दे रहे थे। उनका कहना था कि संसदीय लोकतंत्र में हर किसी को भी विषय उठाने का अधिकार है, लेकिन यह काम नियम के अनुसार होना चाहिए। हंगामा कर रहे सदस्यों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। जब अध्यक्ष ने भाजपा के कार्य स्थगन प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया, तब शोर-शराबे का स्वर और तेज हो गया।
इन्होंने कहा-
'माननीय सदस्यगण, दर्शक दीर्घा में बैठे स्कूली बच्चे सदन की कार्यवाही देख रहे हैं। जरा गौर कीजिए, इस हंगामे से बच्चे क्या सीखेंगे? बच्चे तो लोकतंत्र की संसदीय व्यवस्था को जानने-समझने आए हैं। शांत हो जाएं...-उदय नारायण चौधरी (अध्यक्ष, बिहार विधानसभा)
'पूर्वी चंपारण से इतनी दूर तय करके बच्चों को साथ लेकर बिहार विधानसभा की कार्यवाही एवं संसदीय कार्य दिखाने लाया था, ताकि बच्चों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के बारे में जानकारी हासिल हो सके, लेकिन माननीयों के हंगामे के कारण बच्चों को बड़ी निराशा हुई।'
- महेश नंदन प्रसाद (शिक्षक, मंगल सेमिनरी हाईस्कूल, मोतिहारी)
बोले बच्चे-
* 'यहां का नजारा देखकर दंग रह गया। ऐसा तो हमलोग भी नहीं करते हैं। बहुत कुछ सोचकर यहां आया था पर अच्छा अनुभव नहीं रहा। -गोपाल साह
* 'बहुत उम्मीद से यहां की कार्यवाही देखने आए थे। यह तमाशा देखकर भला कौन राजनीति में आना चाहेगा। मैं तो नेता नहीं बनूंगा। -संजय सिंह
* 'पहली बार नेताओं को इतनी देर और नजदीक से देख रहा हूं। उनसे ऐसे आचारण की उम्मीद लेकर नहीं आया था। -सृष्टि सिंह
* 'यदि कार्यवाही शांति से चलती तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता, लेकिन यहां तो कुछ और अनुभव मिला। -निभा रानी