बिहार में दारोगा की हैसियत 9.5 करोड़
सूबे के भ्रष्ट लोकसेवकों की काली कमाई का अंदाजा तो पहले से था, लेकिन इसकी कल्पना नहीं की गयी थी कि कमाने की होड़ में लगे भ्रष्ट लोकसेवक इसमें अपने हाकिम को भी पीछे छोड़ देंगे।
पटना (राजीव रंजन)। सूबे के भ्रष्ट लोकसेवकों की काली कमाई का अंदाजा तो पहले से था, लेकिन इसकी कल्पना नहीं की गयी थी कि कमाने की होड़ में लगे भ्रष्ट लोकसेवक इसमें अपने हाकिम को भी पीछे छोड़ देंगे। जिस राज्य में काली कमाई के मामले में पूर्व पुलिस महानिदेशक की काली कमाई महज एक करोड़ 40 लाख रुपये की पायी गयी, उस राज्य में एक दारोगा साढ़े नौ करोड़ से भी अधिक की हैसियत रखता है। हालांकि जांच में उसके सभी परिजनों और आश्रितों की कमाई का कोई स्रोत भी नहीं पाया गया।
यह दारोगा परिवहन विभाग में बतौर प्रवर्तन पदाधिकारी के रूप में पटना समेत राज्य के कई जिलों में कार्यरत रहा है और फिलहाल निलंबित है। यह राज्य में किसी लोकसेवक द्वारा की गयी काली कमाई का अबतक का सबसे बड़ा मामला है। हालांकि निगरानी ने राज्य पूर्व डीजीपी नारायण मिश्रा की कुल एक करोड़ 40 लाखï की और आइएएस अधिकारी एसएस वर्मा की करीब सवा करोड़ की संपत्ति जब्त की है। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने 20 मार्च, 2013 को परिवहन विभाग के प्रवर्तन पदाधिकारी अर्जुन प्रसाद के ठिकानों पर छापेमारी कर कुल नौ करोड़ 50 लाख, 63 हजार, 140 रुपये की चल व अचल संपत्ति का खुलासा किया था। इस दारोगा के पास से निगरानी की टीम ने कुल 16 ट्रक, एक महिंद्रा जीप, एक स्कॉर्पियो, एक सैंट्रो कार समेत ऐशो-आराम की करोड़ों रुपये के सामान भी बरामद किए हैं। साथ ही पटना के दीघा इलाके के रामजीचक में चार मंजिला दो-दो मकान समेत एलआइसी समेत अन्य वित्तीय संस्थानों में निवेश किये गए करीब पांच लाख रुपये के निवेश से संबंधित दस्तावेज, करीब पौने दो लाख रुपये मूल्य के स्वर्णाभूषण बरामद किये हैं। मामला पटना के निगरानी की विशेष अदालत में लंबित है, लेकिन निगरानी के विशेष न्यायाधीश की तैनाती नहीं होने के कारण विगत वर्ष सितंबर से इसकी सुनवाई लंबित है। निगरानी के सूत्र बताते हैं कि इस मामले में उनकी जांच पूरी हो चुकी है और अदालत में उसकी संपत्ति जब्त करने का आवेदन विगत सितंबर में ही दायर किया जा चुका है।
जांच के क्रम में परिवहन विभाग के दारोगा अर्जुन प्रसाद ने खुद अपने नाम पर तथा अपनी पत्नी, पुत्र व पुत्र वधु के नाम पर बैंक लोन व अन्य स्रोतों से जुटाई गयी संपत्ति का ब्योरा जब पेश किया तो निगरानी ने उसके खिलाफ कुल नौ करोड़ 50 लाख की काली कमाई के मुकदमे से चार करोड़, 40 लाख रुपये की संपत्ति कम कर दी। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि यह धनराशि दारोगा जी ने अपनी करीब 37 वर्षों की सरकारी सेवा, अपनी पुश्तैनी जमीन और बैंक ऋण से हासिल किया था, लेकिन इस दारोगा के पास अपनी वास्तविक आय से पांच करोड़, 39 लाख, 82 हजार, 864 रुपये की संपत्ति अधिक पायी गयी है। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने इस दारोगा की संपत्ति जब्त करने का आवेदन निगरानी की विशेष अदालत में दायर कर दिया है। पिछले पांच महीने से निगरानी की विशेष अदालत में विशेष न्यायाधीश की तैनाती नहीं होने के कारण इस मामले की सुनवाई लंबित है।