Bihar Politics: जिसने किया सपोर्ट उसी की जड़ काटते गए Lalu Yadav! मंडल-कमंडल राजनीति के बीच कैसे बर्बाद हुई कांग्रेस?
Bihar Political News in Hindi बिहार में कांग्रेस आज दोराहे पर खड़ी है। एक राह निकलने पर गठबंधन धर्म की मर्यादा आड़े आती है और दूसरी ओर बढ़ने पर अस्तित्व के लिए चुनौती है। ऐसे में महागठबंधन में रहते हुए उसे बीच की राह निकालनी है जो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के ताजातरीन रवैये के कारण बहुत सहज भी नहीं।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। बिहार में कांग्रेस आज दोराहे पर खड़ी है। कांग्रेस की सहमति के बगैर लालू वाम दलों की सीटें तय कर दीं और राजद प्रत्याशियों को सिंबल बांटे जा रहे।
परंपरागत सीटों को भी वे नहीं छोड़ रहे। कांग्रेस असमंजस में है। ऐसी ही स्थिति उसके लिए 1999 में बनी थी। तब बिहार-झारखंड संयुक्त थे और कांग्रेस का राजद से समझौता था।
मुकाबले के लिए कुल 54 में उसे मात्र 13 सीटें मिलीं। उनमें से भी पांच पर दोस्ताना संघर्ष करना पड़ा। जीत मिली मात्र दो पर। उसके बाद से बिहार में कांग्रेस के पुराने गौरव के दिन कभी नहीं लौटे, चाहे वह राजद के साथ गठबंधन में रही या अपने बूते चुनाव मैदान में।
मंडल-कमंडल ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
राजद के साथ कांग्रेस का पहला गठबंधन 1998 में हुआ था। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा का कहना है कि तब बिहार में अपनी सरकार के लिए लालू को कांग्रेस का आसरा चाहिए था। वह मंडल-कमंडल की राजनीति का चरम दौर था।
भाजपा की उठान से आहत कांग्रेस भूल गई कि उसे बिहार की सत्ता से अपदस्थ करने वाले लालू ही हैं। एक बार कांग्रेस पाले में क्या आई कि लालू धीरे-धीरे उसके आधार मतों में सेंधमारी करने लगे।
लालू का पूरा जोर इस पर है कि बिहार की राजनीतिक कांग्रेस वैकल्पिक शक्ति न बन जाए। वस्तुत: अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यकों के साथ सवर्णों को मिलाकर कांग्रेस का जनाधार था।
कांग्रेस को छोड़ भाजपा की ओर खिंचते गए सवर्ण
सवर्ण भाजपा की ओर खिंचते गए और बाकी जातियों को राजद समेटती गई। राजद ने अपना मजबूत माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण बना लिया। इस समीकरण के बूते वह अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुका है।
उससे आगे की उपलब्धि इस सामाजिक समीकरण को विस्तारित करके ही संभव है। इसीलिए तेजस्वी यादव माई के साथ बाप (बहुजन, अगड़ा व पिछड़ा) की बात कर रहे।
दूसरी तरफ अपने मूल जनाधार को खो चुकी कांग्रेस कोई नया समीकरण बनाने के बजाय इस कदर निर्भर हुई कि राजद ही उसके भाग्य का निर्णय करने लगा।
कांग्रेस को पहले भी ऐसा झटका दे चुके हैं लालू यादव
इस बार महागठबंधन में सीटें और सिंबल बांटने का लालू जो एकतरफा निर्णय लिए जा रहे, वह कोई पहला मामला नहीं है। 2009 में भी उन्होंने कांग्रेस को मात्र तीन सीटों (सासाराम, औरंगाबाद, मधुबनी) की पेशकश की थी, जो उसकी सिटिंग थीं। अंतत: दोनों दलों के लिए अकेले बूते संघर्ष की नौबत बनी।
कांग्रेस दो संसदीय क्षेत्रों में विजयी रही और दो पर निकटतम प्रतिद्वंद्वी। तब राजद भी दो सीटों पर सिमट गया था। उसके बाद विधानसभा के उप चुनाव में भी कांग्रेस 18 में से दो सीटों पर विजयी रही।
2010 के विधानसभा चुनाव में भी राजद की दुर्गति हुई, जबकि कांग्रेस के वोट में तीन प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। अंतत: दोनों साथ फिर साथ हुए तो 2019 में महागठबंधन की लाज एकमात्र उस किशनगंज में बची, जिसे कांग्रेस ने जीता।
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