बांग्ला गीतों से गुलजार हुई रविंद्र भवन की शाम
बांग्ला गीतों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति करते कलाकार दर्शकों का मन मोह रहे थे।
पटना। बांग्ला गीतों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति करते कलाकार दर्शकों का मन मोह रहे थे। सभागार में बैठे दर्शक कलाकारों की भाव-भंगिमा को देखकर आनंद से भाव-विभोर हो रहे थे। रवींद्र परिषद की ओर से बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि काजी नजरूल इस्लाम की जयंती पर रवींद्र भवन में शनिवार को कार्यक्रम आयोजित किया। कोलकाता एवं पटना के कलाकारों ने कवि नजरूल के गीतों को पेश कर उन्हें याद किया। जयंती पर रवींद्र परिषद पटना के सचिव अशोक कुमार तलापात्र ने कहा कि काजी नजरूल इस्लाम का जन्म पश्चिम बंगाल के आसनसोल के पुरूलिया गांव में 26 मई को हुआ था। कट्टर मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद उन्होंने समाज के विरोध को नजरअंदाज कर हिदू महिला प्रमिला सेन गुप्ता से शादी की थी। उन्होंने अपनी कविता और गीतों में तत्कालीन अंग्रेज शासन का घोर विरोध किया। इसके कारण उन्हें 'विद्रोही' कवि नजरूल कहा जाता है। मुस्लिम समाज में जन्म होने के बावजूद उन्होंने हिदू देवी मां काली पर भक्ति गीत लिखे। कवि नजरूल की 120वीं जयंती पर कोलकाता के जाने-माने कलाकार सुतपा भट्टाचार्य, स्वाति पाल व पटना के पापिया भट्टाचार्य, सोमदत्ता बनर्जी, राजदीप चक्रवर्ती ने गीतों को पेश कर तालियां बटोरीं।
गीतों से गुलजार हुआ परिसर -
कवि नजरूल की जयंती पर रवींद्र भवन में बांग्ला गीतों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति हुई। गायिका सुतपा भट्टाचार्य ने 'सोई भालो कोरे बिनोद बेनि' आमार कोलो मेयेर, कोन कुले आज भिरलो तोरि, तुमि सुंदर ताई चेये थाकि, भोरिया पराण आदि गीतों में भक्ति और प्रकृति का वर्णन बखूबी कर कलाकारों ने तालियां खूब बटोरीं। जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे की ओर बढ़ता जा रहा था, सभागार में एक से बढ़कर एक गीतों की प्रस्तुति से श्रोता आनंदित हो रहे थे। स्वाति पाल ने 'ओ आकुलरे कुल' तोमार खोला हवा, शुधु तोमार वाणि नय गो, गहन कुसुम कुंज मांझे आदि गीतों को पेश कर जयंती को यादगार बना दिया। गीतों को जीवंत बनाने में संगत कलाकारों का योगदान रहा। संगत कलाकारों में तबला पर पार्थो मुखर्जी, की-बोर्ड पर सुमन घटक, ताल वाद्य में सव्यसाचि मुखर्जी, ज्योति प्रकाश चक्रवर्ती, सोमदीप चक्रवर्ती आदि ने सहयोग दिया। समारोह के दौरान रवींद्र परिषद के सभापति प्रभास रॉय, उप सभापति दिलीप सेन गुप्ता, डॉ. ममता दास शर्मा, देवाशीष रॉय, पार्थो मित्रा, निशित कुमार बोस, अशोक कुमार चक्रवर्ती, प्रदिप्तो मुखर्जी, देवोप्रिय घोष, प्रबीर घोष, गौतम भट्टाचार्य, संजीव घोष, सुमंतो सिकंदर, प्रदीप रॉय आदि ने अपने विचार दिए।