JDU का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गैर-भाजपा विकल्प की रेस में आगे बढ़े नीतीश
महागठबंधन की पार्टनर कांग्रेस की दो टूक असहमति तथा कई अन्य दलों की अनमनी हां-ना की परवाह किए बगैर जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गैरभाजपा विकल्प के तौर पर मैदान में उतार दिया है। आक्रामकता की वजह से वे सबसे बड़े मोदी विरोधी दिख रहे हैं।
प्रधानमंत्री पद के दावेदार नेताओं के क्लब में हुए शामिल
आक्रामकता की वजह से दिख रहे सबसे बड़े मोदी विरोधी
पटना [सद्गुरु शरण]। महागठबंधन की पार्टनर कांग्रेस की दो टूक असहमति तथा कई अन्य दलों की अनमनी हां-ना की परवाह किए बगैर जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गैरभाजपा विकल्प के तौर पर मैदान में उतार दिया है। 2019 लोकसभा चुनाव से करीब तीन साल पहले इस कवायद का सीधा मतलब है कि नीतीश कुमार फाइनल मुकाबले से पहले अगले साल प्रस्तावित यूपी विधानसभा चुनाव में अपने दम-खम और स्वीकार्यता का परीक्षण कर लेना चाहते हैं। बेशक यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे 'मिशन 2019' की पालाबंदी पर गहरा असर डालेंगे।
जदयू ने अपने पत्ते खोले
नीतीश कुमार की टीम ने वैसे तो यह कवायद दो-तीन महीने पहले ही शुरू कर दी थी, लेकिन शनिवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर उनकी विधिवत ताजपोशी तथा गैरभाजपा दलों का एका करने संबंधी प्रस्ताव पारित करके जदयू ने अपने पत्ते औपचारिक रूप से खोल दिए।
राष्ट्रीय अध्यक्ष पद संभालकर नीतीश ने खुद को औपचारिक रूप से राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव, अरविंद केजरीवाल सहित पीएम पद के दावेदार नेताओं के क्लब में शामिल किया। यह अलग बात है कि इस दिशा में उनकी तेजी और आक्रामकता के कारण वह फिलहाल बाकी प्रतिद्वंद्वियों से आगे खड़े दिख रहे हैं। गैर भाजपा दलों की व्यापक एकता की पहल करके उन्होंने खुद को नरेंद्र मोदी के सामने विकल्प के रूप में पेश किया है।
करिश्माई खुमार उतरने नहीं देना चाहते
नीतीश की इस जल्दबाजी की कई अन्य वजहें हैं। वह बिहार विधानसभा चुनाव के 'मोदी बनाम नीतीश' मुकाबले की करिश्माई कामयाबी का खुमार उतरने नहीं देना चाहते। इसलिए एक तरफ वह राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर लगातार मुखर हैं, वहीं बिहार में शराबबंदी, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, महिला आरक्षण जैसे चर्चित फैसले करके अपनी 'सुशासन बाबू' वाली छवि को लगातार धार दे रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के संयोगवश नीतीश कुमार वैसे भी नरेंद्र मोदी के मुकाबले चर्चा में चल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के सामने नीतीश को यह लाभ है कि उनकी छवि विवाद से परे है। नीतीश ने शराबबंदी के जरिए महिलाओं तथा स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के जरिए युवाओं को आकृष्ट किया है। बिहार के बाहर अपने इन फैसलों को वह मॉडल और वादे के तौर पर पेश करेंगे।
यूपी चुनाव सेमीफाइनल
वास्तव में गैर भाजपा दलों के व्यापक एका की पहल सोचा-समझा कदम है। यूपी में चौ. अजित सिंह से हाथ मिलाकर नीतीश पहले ही मुलायम सिंह को आक्रामक संदेश दे चुके हैं। अब यदि मुलायम सिंह (या भाजपा विरोधी राजनीति करने वाले अन्य नेता) नीतीश के एका फॉर्मूले पर सहमत नहीं होते हैं तो उन्हें भाजपा-विरोधी वोट बैंक के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराकर पेश किया जाएगा।
सलीके से बिछा रहे गोटियां
जाहिर है कि 'मिशन 2019' की सियासी बिसात पर नीतीश कुमार ने सलीके से गोटें बिछाना शुरू किया है। इसी वजह से वह नरेंद्र मोदी (भाजपा) के सामने वाले पाले में फिलहाल सबसे आग खड़े दिख रहे हैं। वैसे राजनीति में तीन साल का फासला बहुत लंबा होता है। उससे पहले यूपी चुनाव का सेमी फाइनल महत्वपूर्ण है जहां नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी, नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव की लोकप्रियता का कड़ा इम्तिहान होगा।