Move to Jagran APP

बिहार चुनाव के शांतिपूर्ण होने में मददगार बने ये 10 फैक्टर

चुनाव आयोग के लिए इस बार सबसे बड़ी चुनौती थी - शांतिपूर्ण माहौल में चुनाव प्रक्रिया को पूरा करना। जिसमें वो इस बार पूरी तरह खरा उतरा है। नक्सल प्रभावित इलाकों मे सुरक्षा व्यवस्था के जो इंतजाम किए गए उसे सबने सराहा।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2015 11:08 AM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2015 11:50 PM (IST)
बिहार चुनाव के शांतिपूर्ण होने में मददगार बने ये 10 फैक्टर

1. झारखंड के विभाजन के बाद बिहार में यह पहला चुनाव है जिसमें केंद्रीय अद्र्धसैनिक बलों की सबसे अधिक कंपनियों की तैनाती की गई। वर्ष 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक अद्र्धसैनिक बलों की 800 कंपनियों को तैनात किया गया था। लेकिन विभाजित बिहार में 769 कंपनियों का आंकड़ा अबतक सर्वाधिक है।

loksabha election banner

2. बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से करीब तीन महीने पहले ही नक्सलियों को साधने की फूलप्रूफ रणनीति तैयार कर ली गई थी। इस रणनीति के तहत चुनाव से तीन महीने पहले ही नक्सल प्रभावित सभी जिलों में 'एरिया डॉमिनेशन' 'डिमाइनिंग' और सर्च ऑपरेशन का काम शुरू कर दिया गया था।

3. बिहार में यह पहला चुनाव है जिसमें अद्र्धसैनिक बलों के साथ-साथ बिहार पुलिस ने भी सर्विलांस के लिए 'ड्रोन' का जमकर इस्तेमाल किया। 'ड्रोन' का आतंक न केवल नक्सलियों के बल्कि आपराधिक गिरोहों के भी सिर चढ़कर बोला।

4. शांतिपूर्ण, स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान के लिए गृह मंत्रालय ने बिहार पुलिस को वे सभी संसाधन उपलब्ध कराए, जिससे मतदान के लिए सर्विलांस और मॉनिटङ्क्षरग का काम आसान हो गया।

5. दियारा क्षेत्रों में सघन गश्ती के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस से घुड़सवार दस्तों के नहीं आने के बावजूद मोटरबोट, देसी नौकाओं, ड्रोन और पर्याप्त संख्या में मोटरसाइकिल की उपलब्धता ने अद्र्धसैनिक बलों का काम आसान कर दिया।

6. चुनावी तैयारियों के बीच राज्य भर में सक्रिय आपराधिक गिरोहों और बड़े अपराधियों को साधने की तरकीब कामयाब रही। चुनाव से पहले ही राज्य भर में करीब सवा लाख संदिग्धों को थाने में बुलाकर बांड भरवाए गए थे। जबकि करीब साढ़े तीन हजार आपराधिक छवि के लोगों को तड़ीपार (जिलाबदर) कर दिया गया था।

7. दियारा व टाल क्षेत्रों की निगरानी के लिए पहली बार एसडीआरएफ का भी इस्तेमाल किया गया। एसडीआरएफ की टीम में शामिल गोताखोर अद्र्धसैनिक बलों के साथ नदियों, दियारा व टाल इलाकों में सघन गश्ती करते रहे।

8. यह पहला मौका था जब फोर्स डिप्लॉयमेंट को लेकर मीडिया को किसी तरह की आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई।

9. पूरे चुनाव के दौरान राज्य पुलिस मुख्यालय खामोश रहा। यहां तक कि उसके किसी भी अधिकारी ने भी फोर्स डिप्लॉयमेंट और उसकी मूवमेंट को लेकर कोई बयान नहीं दिया।

10. बिहार विधानसभा का यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। यह बिहार के चुनावी इतिहास में पहला मौका है जब बिना किसी खून-खराबे के पांच चरणों की मतदान प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया है।

चुनाव आयोग के लिए इस बार सबसे बड़ी चुनौती थी - शांतिपूर्ण माहौल में चुनाव प्रक्रिया को पूरा करना। जिसमें वो इस बार पूरी तरह खरा उतरा है। नक्सल प्रभावित इलाकों मे सुरक्षा व्यवस्था के जो इंतजाम किए गए और उन इलाकों मेें जिस तरह निर्भीक होकर मतदाताओं ने मतदान किया वह काबिले तारीफ रहा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.