क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट पर हाईकोर्ट सख्त
प्रदेश के गरीब मरीजों की जान से खेलने व जेब काटने वाले नर्सिंग होम व जांच केंद्रों के संचालक सावधान हो जाएं।
जागरण टीम, पटना। प्रदेश के गरीब मरीजों की जान से खेलने व जेब काटने वाले नर्सिंग होम व जांच केंद्रों के संचालक सावधान हो जाएं। कोर्ट की पहल पर अब उन्हें सक्षम क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत पंजीयन कराना होगा। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया है कि 8 मई तक एक्ट के तहत सभी जिलों में पंजीयन प्राधिकार का गठन कर दिया जाए। कोर्ट ने माह भर में राज्य पंजीयन प्राधिकार का गठन करने को भी कहा है।
हाईकोर्ट ने सारण के रिटायर्ड विंग कमांडर डॉ. बीएनपी सिंह की जनहित याचिका पर बीते 10 अप्रैल को यह फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता के अनुसार 17 अगस्त 2010 को देश में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट लागू हुआ था। 20 मार्च 2012 को केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को दो वर्ष के अंदर इस एक्ट का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। लेकिन एक वर्ष तक बिहार में इसपर कोई पहल नहीं हुई। उन्होंने जून 2013 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। कोर्ट के आदेश पर 28 नवंबर 2013 को प्रदेश में एक्ट लागू करने की घोषणा हुई, लेकिन अमलीजामा नहीं पहनाया गया। आदेश का अनुपालन नहीं कराने पर उन्होंने 17 अक्टूबर 2014 को पटना उच्च न्यायालय में बिहार सरकार के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की। न्यायमूर्ति रमेश कुमार दत्ता व न्यायमूर्ति अंजना मिश्रा ने सुनवाई के बाद 10 अप्रैल 2015 को यह निर्णय दिया।
पूरी जिम्मेदारी सरकार की :
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में रोहतास, कैमूर व भोजपुर में गठित जिला रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी को नियम विरुद्ध करार देते हुए उन्हें खारिज कर दिया। साथ ही सरकार को आदेश दिया कि सूबे में राज्य क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट काउंसिल व जिलों में स्थानीय रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के गठन की जिम्मेदारी सरकार की है। इसे वह किसी को डेलीगेट नहीं कर सकती है।
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एक्ट से मरीजों को लाभ :
- मनमाना शुल्क पर अंकुश और गुणवत्तापूर्ण इलाज होगा
- हर अस्पताल में इमरजेंसी सेवा आवश्यक
- अस्पतालों में अनिवार्य रूप से योग्यताधारी चिकित्सक होंगे
- अस्पताल के बाहर बोर्ड में सुविधाओं और डॉक्टरों का विवरण देना होगा
- जिन सुविधाओं को प्रदर्शित किया जाएगा वह सुविधाएं होनी चाहिए।
- झोलाछाप चिकित्सक अस्पताल नहीं खोल सकेंगे