Move to Jagran APP

मिथिला पेंटिंग से पैदा किए रोजगार

मिथिला की हूं, इसलिए मिथिला पेंटिंग तो विरासत में मिली। शौक था-हर कला में माहिर बनूं। एप्लिक, कत्था, सुजनी वर्क भी सीखा। माहौल मिला। घर-परिवार, पास-पड़ोस में सभी महिलाएं मिथिला की परंपरागत कलाओं में माहिर हैं। इसलिए सीखती चली गई।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 03 Jan 2015 11:57 AM (IST)Updated: Sat, 03 Jan 2015 12:00 PM (IST)
मिथिला पेंटिंग से पैदा किए रोजगार

पटना (दिलीप ओझा)। मिथिला की हूं, इसलिए मिथिला पेंटिंग तो विरासत में मिली। शौक था-हर कला में माहिर बनूं। एप्लिक, कत्था, सुजनी वर्क भी सीखा। माहौल मिला। घर-परिवार, पास-पड़ोस में सभी महिलाएं मिथिला की परंपरागत कलाओं में माहिर हैं। इसलिए सीखती चली गई। तब यह न मालूम था कि इसी के बूते मैं जनसंख्या नियोजन के लिए काम करूंगी। 300 महिलाओं को इन विधाओं में प्रशिक्षित कर चुकी हूं। यह कहते हुए अररिया जिले के फारबिसगंज की ऊषा झा के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि का स्थायी बसेरा था।

loksabha election banner

मकसद पूरा किया :

विवाह के बाद पटना आई। आर्थिक तंगी तो कभी नहीं थी, लेकिन मकसद सामने था। बोझ बनी आधी आबादी में मेरी क्या भूमिका है? समाज में मेरा क्या वजूद है? मुसीबत के वक्त मैं क्या करूंगी? इन सवालों का जवाब था-अपनी कला को व्यावसायिक रूप दूं, और इसका विस्तार करूं। सुखद संयोग यह कि पटना में निवास था। कई तरह की सुविधाएं बिना मांगे यहां मिल जाती हैं। राजधानी जो है।

बढ़ती गई, नहीं मुड़ी पीछे

अपना उत्पादन शुरू किया। 1991 का वर्ष था। बाजार का आंकलन किया, एक बात समझ में आई कि मार्केट ट्रेंड को समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। मिथिला की परंपरागत कला को आधुनिक रूप में पेश किया, सलवार सूट, साड़ी, स्टॉल, बेड कवर, दुपट्टा, की मांग बढऩे लगी।

300 महिलाओं को रोजगार :

2008 में मिथिला विकास केन्द्र संस्था बनाई। संस्था से बेरोजगार ग्रामीण महिलाओं को जोडऩा शुरू किया। उन्हें आधुनिक फैशन की जानकारी देकर प्रशिक्षित करने लगी। 300 महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी हूं। ये महिलाएं सामान बना खुद ही मार्केटिंग करती हैं। कुछ महिलाएं अपना सामान मुझे दे देती हैं। मैं पेटल्स क्रॉफ्ट ब्रांड नेम से अपने और उनके उत्पादों की मार्केटिंग करती हूं।

बढ़ाया और दायरा

सबसे पहले उत्पादों का दायरा बढ़ाया। गिफ्ट आइटम बनाना शुरू किया। हालांकि, इन उत्पादों पर भी मिथिला की कलाएं हैं। आइपैड कवर, डायरी, लेडीज बैग, मोबाइल कवर, टाई सहित दर्जनों नए उत्पादों को पेश किया। महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर निपुण किया। इससे मेरे पास ज्यादा उत्पाद आने लगे।

केंद्र सरकार ने भेजा था सिंगापुर

भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग की ओर से मेरा चयन वर्ष 2014 में 'वल्र्ड इंडिया फेस्टिवल' के लिए किया गया। यह सिंगापुर में जुलाई माह में हुआ था। मुझसे जुड़ी महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों को लेकर मैं इस फेस्टिवल में शामिल हुई। पांच लाख रुपये के उत्पाद लेकर गई थी। फेस्टिवल में 4.5 लाख के उत्पाद बिक गए। मुझे सिंगापुर की कंपनियों से आर्डर भी मिले। उनसे जुडऩे का फायदा आगे भी मिलेगा।

अभी बाकी है बहुत काम

पहले खुद के लिए काम करती थी, लेकिन अब लगता है कि असली कारोबार हुनर बांटना है। ग्रामीण महिलाओं के साथ ही पटना की पढ़ी -लिखी लड़कियां भी मेरे पास रही हैं। जो आती हैं, सबको ट्रेनिंग देती हूं। जो खुद मार्केटिंग नहीं कर पाती हैं, उनके उत्पादों की मार्केटिंग मैं ही करती हूं। संस्था में अब कंप्यूटर ट्रेनिंग की भी व्यवस्था कर दी है, अभी बहुत काम है। इसके बदले किसी से कभी पैसा नहीं लिया, आगे भी नहीं लूंगी।

रोजगार पैदा कर मिलती है संतुष्टि

मुझे गर्व है कि जिन महिलाओं को ट्रेनिंग दी, वे खुद के बूते अपना घर चला रही हैं। उन्हें देखकर मुझे जो संतोष मिलता है, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती। मैं समझती हूं कि इससे बड़ा सुख संसार में कुछ है भी नहीं। अगर हुनरमंद लोग इसी तरह अपना दायरा बढ़ाएं तो बेरोजगारी की समस्या अपने आप दूर हो जाएगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.