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आशीष के साथ आइना भी दिखा गईं छठी मइया

सूर्य-रश्मियों में घुला आशीष बरसाकर छठी मइया एक साल के लिए अपने धाम लौट गईं, लेकिन हमारे जवाब के लिए एक सवाल छोड़कर।

By Mrityunjay Kumar Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 09:24 AM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 09:40 AM (IST)

पटना ( सदगुरु शरण)। सूर्य-रश्मियों में घुला आशीष बरसाकर छठी मइया एक साल के लिए अपने धाम लौट गईं, लेकिन हमारे जवाब के लिए एक सवाल छोड़कर। चमचमाता शहर, अनुशासित शहरी और ड्यूटी पर मुस्तैद अफसर-कर्मचारी। बड़ा सवाल है कि बगैर अतिरिक्त संसाधन जुटाए यदि छठ के अवसर पर यह सब संभव है तो बाकी दिन क्यों नहीं। रोज सुबह देर तक अलसाया रहने वाला पटना गुरुवार भोर चार बजे गंगा के घाटों, पोखरों, जलकुंडों और घरों की छतों पर स्थापित अस्थायी जल-स्रोतों पर जागृत है। पूर्वी क्षितिज पर सूर्य की लालिमा महसूस होते ही आस्था हदें लांघने लगी। अकल्पनीय दिव्यता और आध्यात्मिकता का संगम। दुधमुंहे शिशुओं से लेकर शैया-ग्राही बुजुर्ग तक इस आराधना के अंग हैं। सूर्य ऊपर चढ़ रहा है, और श्रद्धा का ज्वार उससे भी ऊपर। गंगा घाटों पर इस ज्वार को थामना कठिन हो रहा है। मंदिरों में घंटे-घड़ियालों का संगीत उच्च हो उठा। सूर्य का पूर्ण अवतार जगमगा उठा, और इसके अर्घ्‍य के साथ छठव्रतियों का 36 घंटों से जारी कठोर-निर्जल व्रत पारण की मंजिल पर आ पहुंचा।

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अलौकिक नजारा है

सूर्य-रश्मियों का तेज छठव्रतियों के ललाट पर सज गया। साधारण चेहरे दिव्य हो उठे। बाकी परिवारीजन इस दिव्यता का मतलब समझते हैं, लिहाजा वे पलभर के लिए स्वार्थी हो गए। दिव्यता का प्रथम स्पर्श कौन करे, यह होड़ शुरू हो गई। ये क्षण सबको एक पल के लिए किसी दूसरी दुनिया में ले गए, और अब धीरे-धीरे स्वाभाविकता लौट रही है। चेहरे सामान्य हो रहे हैं, और उनके साथ रोजमर्रा की जिंदगी भी। छठी मइया सूर्य-रश्मियों में विलीन होकर अपने परमधाम लौट गईं, हमें अपना अनंत आशीष देकर।

खुद ही तय करते हैं अनुशासन

छठ घाटों पर कोई किसी की जाति, धर्म, इलाका नहीं पूछता। गंदगी के लिए कुख्यात शहर छठ से दो दिन पहले जादुई ढंग से चमचमाने लगता है। चिड़चिड़े पुलिसकर्मी पता नहीं कैसे, मुस्कराना और तमीज से बात करने का सलीका सीख जाते हैं। और तो और, शहर की अधिसंख्य गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार आम नागरिक अनुशासन में बंध जाते हैं। इससे भी आगे नजर डालें तो दो-चार दिन के लिए अपराधी भी सहम जाते हैं।

संकल्प लें, दिखेगा बदलाव

वही शहर, वही नागरिक, वही अपराधी, वही पुलिस और वही सुबह-शाम। आखिर छठ पर ही यह सब क्यों होता है, बाकी दिन क्यों नहीं? शायद छठी मइया यह यक्ष-प्रश्न हमारे लिए छोड़कर विदा हुई हैं। हम अपने अन्तर्मन में इस सवाल का जवाब तलाश सकें और अपने शहर को रोज साफ-सुथरा, अनुशासित, अपराधमुक्त और सौहार्द्रपूर्ण रखने का संकल्प लें, तो छठी मइया का आशीष सच्चे मायने में फलीभूत होगा।


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