आखिरकार नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विवि का पुनर्जीवित हो उठा इतिहास
बिहारशरीफ: अथक प्रयास व लंबी यात्रा के बाद इतिहास को पुनर्जीवित करने का जो महान कार्य किया गया वह किसी अचंभे से कम नहीं। पूरे विश्व को ज्ञान की लौ से सराबोर करने वाला प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय ने आखिरकार अपना मुकाम हासिल कर ही लिया। सोमवार का दिन किसी सपने से कम नही था। जब दो विदेशी व आठ देशी छात्रों के साथ पढ़ाई कार्य आरंभ किया गया। विवि में नामांकन के लिए करीब 35 देशों के 1400 ने आवेदन दिये थे। उसमें महज 15 विद्यार्थियों का नामांकन होना प्राचीन काल की कठिन नामांकन प्रणाली से कम नहीं आंका जा सकता। इस संदर्भ में विवि के वाइस चांसलर डा. गोपा सभरवाल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय नामांकन मानक प्रणाली को बरकरार रखने के लिए विद्यार्थियों को कठिन जांच परीक्षा से गुजरने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि छात्रों के पठन-पाठन के लिए अभी राजगीर स्थित अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन हाल का उपयोग किया जा रहा है। जिसे एक माह के लिए किराये पर लिया गया है। उन्होंने बताया कि फिलहाल इतिहास व पर्यावरण विषय की पढ़ाई ही शुरू की गई है। इस संदर्भ में विश्वविद्यालय की डीन अंजना शर्मा ने बताया कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व पर्यावरण का सचेतक रहे इस नगरी के कारण ही फिलहाल इन्हीं दो विषयों को प्राथमिकता दी गई है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण व क्षीण होते इतिहास को बचाने के लिए विश्वविद्यालय कटिबद्ध है। उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में बड़ी सौम्यता के साथ कहा कि हमने मुश्किल शुरुआत के बावजूद जीत हासिल कर ली है। नालंदा ने सदैव जीतना सीखा है हार उनकी नियति नहीं है। विद्यार्थियों की मंडली से जब जागरण की टीम ने बात की तो विद्यार्थी हर्षित हो उठे। उन्होंने कहा कि यह गौरव की बात है कि हमारे नामों के साथ इतिहास रचा जायेगा। जापान से आये छात्र अकीरो नाका मोरा ने अंग्रेजी भाषा में कहा कि भारत के लोगों का प्रेम व व्याख्याताओं का स्नेह उन्हें अपना बना लिया। उन्होंने कहा कि उन्हे नालंदा की गौरवशाली गाथा की जानकारी है पर वे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंसक बख्तियार खिलजी को नहीं जानते। वहीं भूटान से आये नवांग ने भारतीय इतिहास के प्रति अपने स्नेह को दर्शाया। झारखंड के रंजीत कुमार ने कहा कि वे स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें इस अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। युवा प्रोफेसर सैम्यूअल राइट ने कहा इतिहास के प्रति जिज्ञासा व पर्यावरण के प्रति प्रेम से ही विश्व को बचाया जा सकता है। वहीं शिक्षा में 20 वर्षो का अनुभव रखने वाले फैकल्टी सोमनाथ बंधोपाघ्याय ने कहा कि एक बार पुन: विश्व पटल पर शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा का दबदबा होने जा रहा है जिसे नकारा नहीं जा सकता।