बर्खास्तगी के बाद भी चल रही निजी प्रैक्टिस
पटना : इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) का शासी निकाय चाहे बर्खास्त करे या कुछ और चिकित्सक निजी प्रैक्टिस बंद नहीं करेंगे। बुधवार को आइजीआइएमएस के तमाम वरीय चिकित्सक, सामान्य दिनों की तरह प्राइवेट प्रैक्टिस में व्यस्त रहे। यही नहीं अन्य दिनों की भांति अस्पताल परिसर में भी सन्नाटा पसरा था। इमरजेंसी में सिर्फ दो रेजीडेंट थे। इलाज के प्रति उनकी उदासीनता व निजी अस्पतालों के पैरोकार कर्मचारियों के कारण अधिकांश मरीज निजी अस्पतालों की शरण में जाने को विवश थे।
निरंतर विजिलेंस की नहीं व्यवस्था
आइजीआइएमएस निदेशक से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव यहां तक की विजिलेंस के पास भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालों की जानकारी है। बावजूद इसके धावादल की कार्रवाई में जूनियर डॉक्टरों की संख्या ज्यादा है। जब सरकार के पास निजी प्रैक्टिस करने वाले 80 चिकित्सकों की सूची थी तो वरिष्ठ डॉक्टरों की धरपकड़ का प्रयास क्यों नहीं किया गया? प्रख्यात चिकित्सकों का कहना है कि सरकार जब एम्स की तर्ज पर नन प्रैक्टिसिंग अलाउंस दे रही थी तो उसे शुरुआत से इसकी निगरानी की व्यवस्था करनी चाहिए थी।
आमजन में बर्खास्तगी से खुशी
पीएमसीएच ओपीडी में छपरा से सर्जरी विभाग में मरीज दिखाने आए जयकांत ने चिकित्सकों की बर्खास्तगी को सही बताया है। जब अपना कोई गंभीर हो और सरकारी अस्पताल में चिकित्सक न मिले तो परिजनों का क्या हाल होता है, इसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है।
इसी प्रकार राकेश कुमार ने बताया कि सरकार का यह निर्णय ऐतिहासिक है। चिकित्सकों व उनके संगठनों को सब कुछ अपने लिए चाहिए। उन्हें ही सुरक्षा चाहिए, उन्हें बेहतर वेतन चाहिए, उन्हें ही तमाम सुविधाएं चाहिए, उन्हीं के साथ दुनिया भर के लोग गलत कर रहे हैं लेकिन वह मरीजों के साथ क्या कर रहे हैं इस पर विचार नहीं करते?
17 जुलाई की शाम एक बुजुर्ग इमरजेंसी में पहुंचे, पेशाब रुकने से वह तड़प रहे थे। परिजनों ने लाख प्रयास किए, जागरण में फोन कर बताया। दैनिक जागरण ने निदेशक से इस बारे में बात की लेकिन, आखिर वह मरीज भर्ती नहीं ही हो सका। उन्हें बोरिंग रोड के एक निजी नर्सिग होम में भर्ती कराना पड़ा। इसी प्रकार अगस्त में पशुपालन विभाग के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रामेश्वर राय को इमरजेंसी में भर्ती नहीं किया गया। इलाज की राह देखते-देखते उनकी मौत हो गई।