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बांझ गायें देंगी दूध

By Edited By: Published: Sat, 26 Jul 2014 10:25 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jul 2014 10:25 PM (IST)

नीरज कुमार, पटना : राज्य के पशुपालकों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है कि अब उनकी बांझ गायें भी दूध देंगी। अब तक बांझ गायों को पशुपालक बोझ मानकर गोशाला में भेज देते हैं या उन्हें लावारिश छोड़ दिया जाता है। लेकिन बिहार वेटेनरी कालेज के वरिष्ठ पशु चिकित्सकों की टीम ने बांझ पशुओं से दूध निकालकर पशुपालन से जुड़े लोगों को एक वरदान दिया है। इससे सूबे में दूध उत्पादन में तेजी से वृद्धि होने की उम्मीद है क्योंकि हाल के वर्षो में पशुओं में बांझपन में तेजी से वृद्धि हुई है।

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502 पशुओं पर हुआ रिसर्च

बिहार वेटेनरी के कालेज सर्जरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.डा.एसपी शर्मा ने वर्ष 1983 में बांझ पशुओं को कामधेनु बनाने के लिए अनुसंधान शुरू किया था। तभी से लेकर जून 2014 तक अनुसंधान का क्रम लगातार जारी रहा। इस दौरान डा.शर्मा एवं उनकी टीम ने कुल 502 गायों पर अनुसंधान किया, जिसमें से 450 गायें, 49 बाछी एवं 3 भैंस शामिल हैं। इनमें से 10 गायें एवं 2 भैंस को कामधेनु बनाने में सफलता नहीं मिली बाकी सभी पशुओं पर प्रयोग सफल रहा। वर्तमान में अधिकांश गायें 10 से लेकर 18 लीटर तक दूध दे रही हैं।

संतुलित आहार के अभाव में बढ़ रहा बांझपन

बिहार वेटेनरी कालेज के वरिष्ठ चिकित्सक डा.पल्लव शेखर का कहना है कि दुधारू पशुओं को संतुलित आहार नहीं मिलने के कारण उनमें बांझपन तेजी से बढ़ रहा है। दुधारू पशुओं को पर्याप्त मात्रा में हारा चारा, विटामिन, कैल्सियम, खनिज व लवण नहीं मिलने के कारण उनमें बांझपन बढ़ रहा है। पशुओं को संतुलित आहार प्रदान किया जाए तो न केवल बांझपन में कमी आएगी बल्कि सूबे में दूध उत्पादन में भी वृद्धि हो सकती है।

एक माह में विकसित होता थन

अनुसंधान में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि दुधारू पशुओं का पूरा थन लगभग नौ माह में विकसित हो जाता है। लेकिन बांझ गायों को विभिन्न दवाओं एवं संतुलित आहार देकर मात्र एक माह में थन विकसित किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया जाता है कि दूध बनाने वाली ग्रंथी को धीरे-धीरे विकसित किया जाए ताकि पशु पर्याप्त मात्रा में दूध दे सके। पशुओं का दूध उनके नस्ल एवं खान-पान पर निर्भर करता है। इस पद्धति से बांझ गायों से दस से बारह वर्ष तक लगातार दूध लिया जा सकता है।


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