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कोयल बिन बगिया ना सोहे..

By Edited By: Published: Tue, 15 Apr 2014 11:41 AM (IST)Updated: Tue, 15 Apr 2014 11:41 AM (IST)

भभुआ : जिले में वाहनों व चिमनियों के धुआं व हरे पड़ों के अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण असंतुलन बढ़ने लगा है। बढ़ते प्रदूषण से मौसम के तिथि की निश्चितता भी प्रभावित होने लगी है। ऐसे में बारिश के मौसम के स्वाती नक्षत्र में न तो पपीहे के पी-पी की आवाज सुनने को मिल रही है और ना ही बागों में कोयल की कु-कु आवाज ही सुनने को मिल रही है। भोजपुरी कोकिला शारदा सिन्हा द्वारा गाये गये गीत 'कोयल बिन बगिया ना सोहे पूरी तरह फिट बैठने लगी है। सड़क के किनारे व गांव के चौपाल तथा तालाबों के किनारे पीपल, नीम व महुआ के पेड़ भी अब नहीं दिखाई दे रहे है जिनकी छांव में राह से गुजरने वाला पथिक या खेत में काम करने वाला किसान थक कर विश्राम किया करते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में अब बाग लगाने के प्रति भी लोगों का उत्साह कम होते दिखाई दे रहा है। ऐसे में घटते सहकार व बढ़ते हुए निजी स्वार्थ के चलते गरीब परिवारों के विवाह आदि के अवसर पर संपन्न लोगों द्वारा जलावन के लिए सूखी लकड़ी देने की परंपरा भी लगभग अब खत्म होती जा रही है।

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