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बेमौसम की बारिश व भूकम्प के झटके से सिहर रहा नवादा

संवाद सहयोगी, नवादा : जिले में अप्रैल माह में हो रही बेमौसम की बारिश के साथ शनिवार व रविवार का आये भ

By Edited By: Published: Mon, 27 Apr 2015 06:56 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2015 06:56 PM (IST)
बेमौसम की बारिश व भूकम्प के झटके से सिहर रहा नवादा

संवाद सहयोगी, नवादा : जिले में अप्रैल माह में हो रही बेमौसम की बारिश के साथ शनिवार व रविवार का आये भूकम्प के कई झटके से नवादावासी अब भी दहशतजदा हैं। भूकंप के साथ ही रविवार को हुई जोरदार बारिश ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है। खेतों व खलिहानों मे रखे गेहूं की फसल का सड़ना अब भी लगभग तय है। हवा बारिश के अनुकूल होने से संभावनाएं अब भी बरकरार है। इसके साथ ही तापमान में भी किसी प्रकार की तब्दिली नहीं होने से किसान परेशान हैं सो अलग। जिला कृषि विभाग ने अबतक फसलों की हुई क्षति संग्रह का आंकड़ा तक आरंभ नहीं कर पा रही है।

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सोमवार को जिले का अधिकतम तापमान 32 तो न्यूनतम 22 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। गत वर्ष तापमान अधिकतम 43 व न्यूनतम 25 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। अप्रैल में हो रही बेमौसम बारिश से मॉनसून आने में भी बिलम्व होना तय माना जा रहा है। अभी किसानों को आवश्यकता थी तेज धूप के साथ पछूवा हवा की। लेकिन न तेज धूप है न ही पछूवा हवा। आकाश में बादल व तेज पूरवा हवा के साथ हर एक- दो दिनों पर हो रही हल्की से झमाझम बारिश ने किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा है। अब भी जिले में कम से कम 25 प्रतिशत किसानों के गेहूं खेतों में लगे हैं तो उतनी ही गेहूं खलिहानों से किसी तरह घर पहुंच पायी है। खलिहानों में रखे गेहूं की फसल का सड़ना तय माना जा रहा है जिससे किसान का पूंजी व श्रम दोनों बर्बाद होने की संभावना है।

रविवार की देर शाम हुई झमाझम बारिश के बाद भी आकाश में उमड़ते-घुमड़ते काले बादल व पूरवा हवा के चल रहे झोंको से किसानों के अरमानों पर काला साया मंडरा रहा है। बारिश की संभावना बरकरार है तो खेतों व खलिहानों में गेहूं फसल का सड़ना तय है। किसानों की सबसे बड़ा त्रासदी यह है कि तीन वर्षो के बाद जिले में धान की अच्छी फसलें हुई तो उन्हें प्रशासनिक विफलता के कारण अपना धान बिचौलियों के हाथों बेचना पड़ा। अब जब गेहूं की तैयार फसल घर पहुंचने की बारी आयी तो वह आंधी-पानी के कारण बर्बाद हो रही है। ऐसे में किसानों का कर्ज में डूबने के अलावा काई विकल्प शेष नहीं रह गया है।


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