रजौली के जंगलों में अर्से बाद बाघ का विचरण
संवाद सहयोगी, नवादा : जिले के रजौली अनुमंडल में कभी माओवादियों के भय से लोग घरों में दुबकने का मज
संवाद सहयोगी, नवादा :
जिले के रजौली अनुमंडल में कभी माओवादियों के भय से लोग घरों में दुबकने का मजबूर हुआ करते थे। हालांकि माओवादियों ने कभी इनके विचरण पर रोक नहीं लगाया था, बावजूद जंगलों में लकड़ी काटकर पेट पालना उनके लिये मुश्किल हुआ करता था। अब एक नया संकट आ खड़ा हुआ है सो लोग न केवल खौफजदा हैं बल्कि घरों से बाहर निकलने से भी परहेज करने लगे हैं। सिरदला के जंगली व पहाड़ी क्षेत्रों में एक चितकबरे बाघ ने पिछले कई दिनों से आतंक मचा रखा है। वह लकड़ी काटने गये लकड़हारों पर आक्रमण का प्रयास कर रहे है तो अबतक जंगल घास चरने गये कई पशुओं को अपना शिकार बनाया है। तेलनी, खटांगी, जमुगांय समेत दर्जनों गांवों के आसपास रात्रि में दस्तक देने से ग्रामीण परेशान हैं तो वे रात में घरों से निकलने से परहेज कर रहे हैं। रात तो रात दिन के उजाले में भी लकड़हारों ने जंगल जाना बंद कर दिया है तो घरों के आगे दिन-रात आग जला अपनी सुरक्षा में लगे हैं। ऐसी भी बात नहीं है कि यह मात्र अफवाह है। दर्जनों की संख्या में वैसे लकड़हारों द्वारा जो नियमित रूप से जंगलों में लकड़ी काटने जाते हैं बाघ द्वारा खदेड़े जाने की पुष्टि कर रहे हैं। ग्रामीणों द्वारा जंगल में चितकबरा बाघ के प्रवेश की सूचना वन विभाग के अधिकारियों को दी गयी है। वैसे रजौली व सिरदला के जंगलों में करीब 30 वर्ष बाद बाघ के देखे जाने की सूचना है। 30 वर्ष पूर्व न केवल रजौली, सिरदला, ककोलत बल्कि रोह के जंगलों में बाघ हुआ करता था। लेकिन जंगलों की कटाई व पत्थर खनन में डायनामाइट की गूंज ने कालांतर में बाघों का दहाड़ना बंद कर दिया था। अब जबकि एकबार फिर बाघ ने दस्तक दी है तो नयी पीढ़ी के लिये यह कौतूहल का विषय है। अब जंगलों व पहाड़ों में निवास करने वालों के लिये खतरे की घंटी। जंगलों व पहाड़ों में घास चरने वाले पशु बाघ का शिकार हो रहे हैं तो पशु पालकों में बेचैनी देखी जा रही है।
बहरहाल बाघ के प्रवेश व विचरण से सिरदला प्रखंड के जंगलों व पहाड़ी क्षेत्रों में बसे लोगों की परेशानियां बढ़ी हुई है जंगलों से लकड़ी काटकर पेट की ज्वाला शांत करने वाले मजदूरों के सामने रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी है।