बुढ़वा महादेव मंदिर
चतुर्भुज स्थान स्थित बुढ़वा महादेव मंदिर की प्रसिद्धि मुजफ्फरपुर ही नहीं आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में भी फैली है।
मुजफ्फरपुर। चतुर्भुज स्थान स्थित बुढ़वा महादेव मंदिर की प्रसिद्धि मुजफ्फरपुर ही नहीं आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में भी फैली है। सावन, महाशिवरात्रि, रामनवमी, अन्नकूट, होली, जन्माष्टमी व अचला सप्तमी सहित विविध अवसरों पर यहां दूर-दूर से लोग पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है।
मंदिर का इतिहास : मंदिर की स्थापना कब हुई, इसका कोई लिखित इतिहास तो नहीं, मगर महंत नवल किशोर मिश्र की मानें तो यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। वर्षो पूर्व इसकी स्थापना की गई थी। पहले यहां घना जंगल था। एक महात्मा रहते थे। कालांतर में तुर्की में पोखर की खुदाई के दौरान भगवान चतुर्भुज की मूर्ति मिली। रात्रि स्वप्न से प्रेरित होकर महात्मा मूर्ति लाने के लिए चल पड़े। वहां लोगों ने मूर्ति देने से इंकार कर दिया। मगर महात्मा के हठ के आगे लोगों को झुकना पड़ा। फिर वे पैदल ही उस भारी मूर्ति को लेकर यहां के लिए चल पड़े। यहां लाकर मूर्ति को स्थापित किया। फिर इस मंदिर का नाम चतुर्भुज नाथ मंदिर पड़ गया। अभी यहां शिव परिवार के अलावा बटुक भैरव, सूर्य देवता व बजरंग बली भी विराजमान हैं।
तैयारी : लोगों का कहना है कि सावन सहित विविध अवसरों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। सावन की चारों सोमवारी के दिन यहां महारुद्राभिषेक व रात्रि में फल-फूल और विविध सामग्री से बाबा का विशेष श्रृंगार होता है। जप-अनुष्ठान सतत चलता रहता है। यहां समय-समय पर विविध अनुष्ठान भी होते हैं। पूर्णिमा के दिन बाबा का श्रृंगार देखते बनता है।
बाबा के प्रति अपार श्रद्धा : महंत पं. मिश्र कहते हैं-नित्य के अलावा विविध शुभ अवसरों पर लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए जुटते हैं। सावन में तो यहां पूजा के लिए अच्छी भीड़ रहती है। सेवक पं.हरिशंकर पाठक कहते हैं कि बाबा के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है। घर में कोई भी यज्ञादि कार्य हो या शुभ संस्कार, लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए अवश्य आते हैं।