उम्र की ढलान, मुश्किल 'उड़ान'
उम्र की ढलान पर मुश्किल 'उड़ान' होगी। जिले से हज को जाने वाले अधिकतर लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र अब ढलान पर है।
मुजफ्फरपुर। उम्र की ढलान पर मुश्किल 'उड़ान' होगी। जिले से हज को जाने वाले अधिकतर लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र अब ढलान पर है। हज पर जाने वालों में करीब 80 फीसद लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 60 से अधिक है। 70 से 80 वर्ष की उम्र के लोग करीब 10 फीसद हैं। कई तो मुश्किल से भी खड़े हो पाने की स्थिति में नहीं हैं। रविवार को बैंक रोड मस्जिद में आयोजित हज प्रशिक्षण में कई परिजन का सहारा लेकर पहुंचे। जानकारों की मानें तो हज के अरकान काफी मुश्किल होते हैं। सफर में भी परेशानी होती है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये अरकानों को सही तरीके से पूरा कर पाएंगे। सेंट्रल हज कमेटी बुजुर्गो व बीमारों से नहीं जाने की अपील करती है। 70 साल से अधिक उम्र वाले बिना परिजन के नहीं जा सकते। ऐसे लोगों का कहना है कि हज का दारोमदार नीयत पर है। नीयत पर ही अल्लाह ने चाहा तो उनकी हज कबूल होगी। खादीमुल हुज्जाज हाजी रफीक नूर कहते हैं कि हज के सफर में भी दुश्वारियां होती हैं। बूढ़ों की परेशानी बढ़ जाती है। अल्लाह की रहमत से अरकान पूरे हो जाते हैं।
एयरपोर्ट से ही शुरू हो जाती जद्दोजहद
हज के सफर की मुश्किल सूबे से ही शुरू हो जाती है। पटना से गया एयरपोर्ट पहुंचने में ही काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सऊदी अरब में ग्रीन ग्रुप वालों को हरम शरीफ से करीब 800 से 1500 मीटर की दूरी तक ठहराया जाता है। उन्हें पैदल ही आना-जाना है। वहीं, अजीजीया ग्रुप वालों के ठहरने की व्यवस्था करीब 6 से 15 किमी तक होती है। उनके लिए बस का इंतजाम होता है। खाना-ए-काबा के सात बार तवाफ में लगभग चार किमी पैदल चलना होता है। वहीं शफा व मरवा पहाड़ पर सात बार दौड़ लगाने में भी करीब तीन किमी की दूरी हो जाती है। उमरा में करीब 11 किमी पैदल चलना पड़ता है। इसके साथ ही कई और अरकान है जिसे पूरा करने में बुजुर्गो को परेशानी होती है।