और बैंक को लेना पड़ा वापस सर्टिफिकेट केस
जासं, मुजफ्फरपुर : आमतौर पर ऋणी के विरुद्ध सर्टिफिकेट वसूली केस होने के बाद वह किसी प्रकार के कानूनी
जासं, मुजफ्फरपुर : आमतौर पर ऋणी के विरुद्ध सर्टिफिकेट वसूली केस होने के बाद वह किसी प्रकार के कानूनी संरक्षण का हकदार नहीं होता है। ऐसे मामलों में कुर्की जब्ती के आदेश हो जाते हैं। लेकिन बकाएदार ने ईमानदारी से बकाया जमा कर दिया है, तो उसका 'सच' आखिरकार इंसाफ दिला ही देता है। ऐसा ही एक मामला उपभोक्ता फोरम में उजागर हुआ है।
ऋणी अशोक कुमार सिंह ने मिठनपुरा स्थित एक बैंक से ऋण लिया था। बैंक द्वारा जमीन बंधक रख राशि कर्ज दी थी। 29 अप्रैल 2011 को परिवादी ने तीन लाख रुपये मूल धन, चक्रवृद्धि ब्याज समेत अन्य देय का भुगतान कर दिया। इसके बाद ऋणी ने बैंक से बंधक पड़ी जमीन की कागज व ऋण मुक्ति प्रमाणपत्र की मांग की, लेकिन नहीं मिला। कई चक्कर लगाने के बाद वह बिहार उपभोक्ता सेवा संघ के सचिव रणजीत कुमार से संपर्क किया। और वर्ष 2012 में फोरम में केस दर्ज किया। 19 सितंबर को परिवादी एसबीआइ बैंक को नोटिस जारी हुआ। इस साल लगातार सुनवाई के बाद रणजीत कुमार ने साबित कर दिया कि अब इस मामले में सर्टिफिकेट केस गलत है। इसे वापस लिया जाए। फोरम अध्यक्ष गोविंद प्रसाद सिंह व सदस्य अर्चना ंिसह की पहल पर 13 मार्च को आदेश जारी हुआ कि वादी को ऋण मुक्ति प्रदान पत्र दिया जाए। आखिर में बैंक ने ऋणी को जमीन का कागज व प्रमाणपत्र दे दिया।