तारापुर में चुनाव के समय गौण हो जाता विकास का मुद्दा
मुंगेर के तारापुर में सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी समस्याओं को कायदे से मुद्दा बनना चाहिए। यदि इनके आधार पर मतदान हो तो लोगों को राहत मिलेगी। इलाके का विकास होगा और सोचने-समझने की दृष्टि विकसित होगी। लेकिन, यहां हर चुनाव में मुद्दे गौण हो जाते हैं ।
मुंगेर [मनोज मिश्रा]। जात न पूछो साध की, पूछ लीजियो ज्ञान, मुंगेर के तारापुर में कबीर दास की इस पंक्ति के मायने पूरी तरह बदल जाते हैं। यहां समस्याएं अनंत हैं, लेकिन चुनाव के दौरान ये गौण हो जाती हैं। जात-पात ही निर्णायक साबित होता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी समस्याओं को कायदे से मुद्दा बनना चाहिए। यदि इनके आधार पर मतदान हो तो लोगों को राहत मिलेगी। इलाके का विकास होगा और सोचने-समझने की दृष्टि विकसित होगी। लेकिन, यहां हर चुनाव में मुद्दे गौण हो जाते हैं और जातीय गोलबंदी ही अहम साबित होती है।
इस बार भी चुनाव की आहट के साथ उम्मीदवारों की चहल पहल नजर आने लगी है। नए सिरे से जातीय गोलबंदी की मुहिम भी शुरू हो गई है। पिछले साल जोर-आजमाइश कर चुके धुरंधर ही कमोबेश इस बार भी मैदान में रहेंगे। अंतर केवल पार्टियों का होगा। जरूरी नहीं कि पिछली बार एक पार्टी से चुनाव लड़े उम्मीदवार फिर उसी पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमाएं।
एक नजर अभी तक यहां के चुनावी इतिहास पर। 1995 से लेकर 2010 तक पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी का तारापुर में वर्चस्व रहा। 2010 के चुनाव में उनकी ही रिश्तेदार नीता चौधरी ने उन्हें शिकस्त दी। शकुनी की हार के दो प्रमुख कारण रहे। पहला उनके स्वजातीय मतदाताओं का नीता चौधरी की ओर उनकी तुलना में ज्यादा झुकाव और दूसरा कांग्रेस प्रत्याशी संजय यादव द्वारा राजद के आधार वोट में जबरदस्त सेंधमारी।
तारापुर में सिंचाई, शिक्षा का गिरता स्तर, विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में हेराफेरी बड़े मुद्दे हैं। अनुमंडल मुख्यालय होने के बावजूद तारापुर के शहरी इलाकों के विकास को लेकर अब तक कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई जा सकी है। विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला के बाबत बनायी गई तमाम सरकारी योजनाओं को धरती पर उतारना संभव नहीं हो सका है। इन सबके बावजूद जाति का मुद्दा ही चुनावों में निर्णायक होता आया है।
लोग जातिगत गोलबंदी पर अफसोस तो जताते हैं लेकिन इसे स्वीकार भी करते हैं। तारापुर बस स्टैंड के पास रिक्शाचालक रामसेवक पासवान ने कहा- पांच वर्ष तक विकास और मुद्दे पर जितनी चर्चा हो जाए, लेकिन चुनाव के समय सिर्फ उम्मीदवार की जाति पर ही चर्चा होती है। साधु (उम्मीदवार) से जात नहीं ज्ञान (विकास कार्यों) के बारे में मतदाता बात करेंगे, तभी इलाके की सूरत बदलेगी।