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हर चेहरे पर डर का खौफ, ना जाने अब क्या होगा

संवाद सूत्र, मुंगेर : दो दिनों से लगातार शहर में आ रहे भूकंप के झटके ने मुंगेरवासियों को झकझोर कर रख

By Edited By: Published: Sun, 26 Apr 2015 09:00 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2015 09:00 PM (IST)
हर चेहरे पर डर का खौफ, ना जाने अब क्या होगा

संवाद सूत्र, मुंगेर : दो दिनों से लगातार शहर में आ रहे भूकंप के झटके ने मुंगेरवासियों को झकझोर कर रख दिया है। हर चेहरा पर खौफ पसरा हुआ है। आराम हराम हो गया है। रात में लोग सो नहीं पा रहे हैं, दिन में महिलाएं घर में भोजन नहीं बना पा रही है। हर और बैचेनी का आलम है।

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1934 से कम नहीं था दो दिनों का भूकंप

1934 के भूकंप का जलजला झेल चुके गुलजार पोखर के हीरालाल रजक ने कहा कि भूकंप के तीन दिन पहले से आंधी-तूफान व बारिश हो रही थी। 15 जनवरी के दोपहर भूकंप आया उस समय वह सेवासदन के पास कपड़ा सूखा रहे थे, अचानक धरती डोलने लगी। देखते ही देखते पूरा शहर मलवे की ढेर में तब्दील हो गया था। बैलगाड़ी में शव को लाद कर शमशान घाट ले जाया जाता था।

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रातभर परिवार के साथ सोया नहीं

सोनापट्टी निवासी सितानाथ शरण ने कहा कि भय का आलम बना है। शनिवार की रात भर परिवार के साथ सो नहीं सके। बीमार होने के कारण लोग पकड़ कर घर से बाहर निकालते हैं। लगातार दो बार आए भूकंप का झटका प्रलय आने का संकेत है।

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पत्नी के साथ दुकान के कोने में थे खड़े

रविवार की भूकंप से मन में बैचेनी सी हो गयी है। ना जाने अब क्या होगा? रविवार को जब दुबारा भूकंप आया तो पत्‍‌नी के साथ दुकान के कोने में खड़े भगवान का नाम जप रहे थे।

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1934 के भूकंप में दादा की हुई थी मौत

सोनापट्टी के शैलेश पोद्दार बताते हैं कि अब भूकंप का झटका आया तो मुंगेर का विनाश तय है। उन्होंने बताया कि हमारे बाबू जी बताते हैं कि बाटा चौक के पास उनका दुकान था। 15 जनवरी 1934 के भूकंप के समय छोटा दादा शीतल पोद्दार एवं विरो पोद्दार मलबे के अंदर दबा गए। शीतल पोद्दार की मौत हो गयी। वहीं तीन दिनों के बाद विरो पोद्दार को मलबे से जीवित निकाला गया।

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मां मैं शादी नहीं करुगी मुंगेर में

सोनापट्टी की शशि गोयल बताती है कि वह 1934 के भूकंप के त्रासदी से अवगत थी इसी कारण मुंगेर में शादी नहीं करना चाहती थी। जब उसकी शादी की बात मुंगेर में लगी, तो वह अपनी मां से कहती थी कि मुंगेर में शादी नहीं करेगी पर विधि का विधान था शादी हमारी मुंगेर में ही हो गई। मैं बहुत डरी हुई हूं।

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कहीं भागने की जगह तक नहीं

सोनापट्टी की गीता डोकानिया कहती है कि यहां चारों और ऊंचे-ऊंचे मकान हैं। भागने का भी जगह नहीं है। ऐसे में भूकंप का तेज झटका आया, तो तबाही तय है।

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अभी भी लगा है डर

बेकापुर की चंद्रकांती देवी ने कहा कि लगातार दो दिनों से भूकंप के झटके से डर बना है कि अब क्या होगा। 1934 के भूकंप में मेरी मां कौशल्या देवी दोनों भाई रामसागर एवं गंगा सागर को गोद में लेकर भागी थी। संयोग से मां जख्मी हुई पर दोनों भाई बच गया था।

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1934 के भूकंप में फुआ-फुफ्फा की हुई थी मौत

दो दिनों के लगातार आए भूकंप में परमेश्वर में हमलोगों का बचा लिया है। लेकिन अभी भी डर बना हुआ है। यह कहा कि 1934 के भूकंप में हमारे फुआ एवं फुफ्फा की मौत कुंआ में गिरने से हो गई थी।

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समाज में नैतिकता का हुआ हनन

गांधी चौक निवासी हरिहर प्रसाद बताते है कि 1934 के भूकंप के समय पूरा चौक बाजार, गांधी चौक मलबे में तब्दील हो गया था। दस दिनों तक खाना पर आफत हो गया था। कहा कि समाज में नैतिकता का हनन हो रहा है जिस कारण प्रकृति अपना रंग दिखा रही है।


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