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जिस मंदिर में भगवान ही नहीं वहां कैसे पहुंचे भक्त

मधुबनी। सुनील कुमार मिश्र। वैसे तो सभी स्तर के शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन की स्थिति दयनीय अवस्

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 11:05 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 01:43 AM (IST)
जिस मंदिर में भगवान ही नहीं वहां कैसे पहुंचे भक्त
जिस मंदिर में भगवान ही नहीं वहां कैसे पहुंचे भक्त

मधुबनी। सुनील कुमार मिश्र। वैसे तो सभी स्तर के शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन की स्थिति दयनीय अवस्था में है। लेकिन उच्चतर शिक्षा की हालत सबसे ज्यादा खराब है। कॉलेजों में प्राध्यापक व संसाधन का अभाव है। किसी तरह यह मात्र कागजी नामांकन वाला शिक्षण संस्थान बन कर रह गया है। भला हो लड़कियों का जो स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए कॉलेजों में नामांकन कराती हैं। यूं कहना बेहतर होगा कि जब मंदिर में भगवान(शिक्षक) ही नहीं तो वहां भक्त कैसे पहुंचेंगे।

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जिले में कुल 13 अंगीभूत कॉलेज हैं। वहीं वित्त रहित कॉलेजों की संख्या 6 है। ये सभी कॉलेज कागज पर ही चलते हैं। इन महाविद्यालयों में छात्र कॉलेज करने नहीं जाते। इसका मुख्य कारण विषयगत प्राध्यापक कर घोर अभाव है। उदाहरण के तौर पर जिला मुख्यालय स्थित सबसे बेहतर कैंपस आरके कॉलेज का है। यहां कभी सुबह से लेकर शाम तक कक्षाएं लगा करती थी। लेकिन गत एक दशक से कॉलेज करने वाले छात्रों की संख्या में भारी कमी हुई है।

कॉलेज शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. सीएम झा कहते हैं कि अंगीभूत कॉलेजों की संख्या 13 है। जिसमें शिक्षकों की घोर कमी है। यहां ¨हदी, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र विषय में एक भी शिक्षक नहीं है। वहीं भौतिकी, प्राणी शास्त्र, बॉटनी में एक से तीन शिक्षक हैं। जबकि छात्रों की संख्या 15 हजार है। यहां वर्ग कक्ष की कमी नहीं है। उपकरण भी मौजूद हैं। कैंपस भी बेहतर है लेकिन कक्षा चलना मुश्किल है। कहा कि आबादी की तुलना में जिले में उच्चतर शिक्षक संस्थान की कमी है। एक लाख की आबादी पर विश्वविद्यालय होना चाहिए। यह राष्ट्रीय मानक है। यहां नहीं है। तकनीकी संस्थानों की घोर कमी है। अभी तक न तो यहां इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई और न ही मेडिकल कॉलेज की। जिस कारण यहां के बच्चों को राज्य से बाहर जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है।

डॉ. झा कहते हैं कि इसके लिए प्रारंभिक शिक्षा के साथ शिक्षा का निचले स्तर पर व्यापक प्रचार-प्रसार का अभाव है। इस सबसे पहले यदि उच्चतर शिक्षण संस्थानों में अध्ययन का विकास करना है तो यहां छात्रों के अनुपात में शिक्षकों को उपलब्ध कराना जरूरी है।

रानी झा स्नातकोत्तर में आरके कॉलेज में पढ़ाई कर रहीं हैं। कहती हैं कि शिक्षक के अभाव के कारण हम सही तरीके से शिक्षा नहीं ले पा रही हूं। स्वयं के बूते नोट्स उपलब्ध कर पढ़ाई कर रही हूं। शिक्षक के अभाव में वर्ग का संचालन होना संभव नहीं है।

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माध्यमिक स्कूलों में भी शिक्षकों की कमी

--यहां भी शिक्षकों का है घोर अभाव

जासं, मधुबनी: जिले में प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में ही ड्रॉप आउट की संख्या अधिक ही नहीं है। हाई स्कूलों में भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां नामांकन तो बच्चे कराते हैं परंतु स्कूली शिक्षा लेने नहीं आते। स्कूल में कॉलेजों की लाज हमारी बेटियां रख रहीं है। स्कूलों में भी उनकी उपस्थिति लड़कों से ज्यादा है। इसके पीछे कारण लड़कों द्वारा मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी के लिए को¨चग में शिक्षा लेना एवं स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी है। विषयवार शिक्षक नामी स्कूलों में भी नहीं है। दुर्दशा का आलम प्लस टू में अग्रेसित विद्यालयों की संख्या सर्वाधिक है। हालात यह है कि अभी तक कई उत्क्रमित प्लस टू शिक्षण संस्थान में नामांकन तक नहीं हो रहा है तो अन्य व्यवस्था का आप सहज ही अंदाजा निकाल सकते हैं। उच्च विद्यालयों में नामांकन तो मानक के अनुसार होता है। लेकिन पढ़ने मुश्किल से 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही आते हैं। जिसके पीछे मुख्य कारण संसाधन व शिक्षकों का अभाव है। पहले स्कूलों में विज्ञान की बेहतर शिक्षा दी जाती थी। यहां उन्नत प्रयोगशाला की व्यवस्था थी। जिससे होनहार छात्र निकलते थे। अब वैसी स्थिति नहीं है।


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