सियासी वर्चस्व को ले कोसी में गरजती रही हैं बंदूकें
सुलेन्द्र, मधेपुरा : सामाजिक न्याय व आपसी भाईचारा के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध मंडल की धरती मधेपुरा
सुलेन्द्र, मधेपुरा : सामाजिक न्याय व आपसी भाईचारा के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध मंडल की धरती मधेपुरा भले ही समाजवादी नेता स्व.भूपेन्द्र नारायण मंडल, मंडल आयोग के अध्यक्ष स्व. बीपी मंडल, तथा बिहार के पहले कानून मंत्री स्वर्गीय कमलेश्वरी प्रसाद मंडल के कृतित्व से अपना अलग पहचान बनाया हो। किंतु हाल के दो दशकों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने यहां की तस्वीर ही बदल कर रख दी। जानकारों की मानें तो मधेपुरा के राजनीतिक संस्कृति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में स्व. भूपेन्द्र नारायण मंडल व स्व. ललित नारायण मिश्र आमने-सामने थे। मतदाताओं की मांग पर दोनों प्रतिद्वंदी एक-दूसरे को अपने चहेते मतदाताओं के पास भेजते थे। किंतु वर्ष 1977 के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों ने मधेपुरा के राजनीतिक संस्कृति को ही बदल दिया। यहां हो रहे चुनाव को लेकर नेता व उनके समर्थक दो गुटों में विभक्त हो गये ओर वरीय नेताओं द्वारा बिछाए गए राजनीतिक शतरंज के मोहरे बन गए। चुनाव के दौरान एक दूसरे के जान के दुश्मन बने नेताओं ने अपने वर्चस्व के लिए खुलकर हथियारों का प्रदर्शन किया। इसका यह नतीजा निकला कि तत्कालीन विधायक राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव व आनंद मोहन के बीच मधेपुरा जिले के भंगहा नहर तथा सहरसा जिले के पामा में जमकर गोलीबारी हुई थी। कई हताहत भी हुए। इसके बाद वर्ष 1989 में राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ। इस चुनाव के दौरान जनता दल के तत्कालीन सांसद डा.
रमेन्द्र कुमार यादव रवि ने अपना सीट शरद यादव को दे दिया। लिहाजा चुनाव में शरद यादव को आनंद मोहन ने चुनौती दे डाली। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजकुमारी देवी ने भी पर्चा भरा किंतु सियासत के मोहरे बने राजकुमार की बेरहमी से हत्या कर दी गई। दशक बाद फिर राजनीति ने करवट ली है। राजद के सदर विधायक प्रो. चंद्रशेखर पर हुई जानलेवा हमला की जांच के बाद ही सामने आएगा कि हमला के पीछे क्या राज था। पुलिस जांच में लग गयी है। आखिर क्यों हमला हुआ। और इससे किसे फायदा होगा।