गरीबों को आवास देने की योजना का हुआ बंटाधार
जागरण संवाददाता, मधेपुरा : जिले में गरीबों के लिए सरकारी योजना के तहत बनने वाली इमारतें भ्रष्टाचार क
जागरण संवाददाता, मधेपुरा : जिले में गरीबों के लिए सरकारी योजना के तहत बनने वाली इमारतें भ्रष्टाचार की गंगा में बह जाने से गरीबों का सपना चकनाचूर हो गया है। वहीं भवन निर्माण के लिए सरकार से आवंटित धनराशि भ्रष्टाचार के पहरेदार के चंगुल में फंस गया है।
हालांकि भवन निर्माण में हुई गड़बड़ी का पता लगाने के लिए जिन अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई। मानों उन्हें भी भ्रष्टाचार का चस्का लग गया बल्कि जांच हुई तो भ्रष्टाचार के जड़ का पता भी चला। लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। नतीजतन, वर्षो बाद भी भ्रष्टाचार की जड़ में शामिल लोग मौज कर रहे हैं। वहीं गरीबों को आशियाना मिलने का सपना अब अधूरा प्रतीत होने लगा है।
गौरतलब है कि यह मामला गरीबों को मिलने वाले 319 सरकारी आवास निर्माण घोटाले से जुड़ा हुआ है। विदित रहे कि गत 18 जनवरी, 2012 को तत्कालीन एडीएम ने जांच रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की पुष्टि करते हुए दोषियों पर प्राथमिकी सहित गलत लाभुकों से राशि वसूली का निर्देश दिया था, जो आजतक सरकारी बाबूओं की आंखों से ओझल धूल खा फांक रहे हैं। उधर, इस पूरे मामले में आरोप के घेरे में आए तत्कालीन मुख्य पार्षद विजय कुमार विमल ने सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए आवास निर्माण व आवंटन में किसी प्रकार की धांधली से इंकार किया है।
-----------
गरीबों के सपने पर भ्रष्टाचार का प्रहार : आइएचएसडीपी योजना में स्लम बस्तियो में रहने वाले गरीबो को आशियाना मुहैया करना था। 6.41 करोड़ की इस योजना से 319 गरीबों को घर बनाकर देना था। लेकिन यहां भी गरीबों के सारे सपने भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। अगर कहीं इमारत बनी तो वहां भी घोर अनियमितता हुई। लिहाजा बनाए गए अधिकांश आवास की छत टपकने लगी हैं तो दीवार में दरार आ गई हैं। ज्ञात हो कि मधेपुरा के जय बजरंग कंस्ट्रक्शन कंपनी को निर्माण का ठेका मिला था।
----------
क्या है पूरा मामला : आइएचएसडीपी योजना के तहत जिले में गंदे, मलिन क्षेत्र में रहने वाले लोगो के लिए बनाना था। इसके लिए प्रति आवास 2.37 लाख की लागत से कुल छह करोड़ 41 लाख 19 हजार रुपये का आवंटन भी प्राप्त हुआ। सूत्रों की मानें तो अधिकांश आवास अधूरे पड़े हैं और राशि की निकासी हो गई। इस पूरे मामले में नगर परिषद के तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी महेन्द्र भारती की मिलीभगत से नियम को ताक पर रख कर तत्कालीन मुख्य पार्षद ने अपने ही वार्ड से अधिकांश लाभुकों का चयन कर लिया गया। जिसमें बड़े पैमाने पर धांधली बरती गई। पिछड़ी जाति को अनुसूचित जाति बताने, एक ही परिवार के कई सदस्यों को आवास आवंटन जैसे कई गड़बड़ियां सामने आई लेकिन कार्रवाई के नाम पर प्रशासन चुप बैठा है।
-----------