भक्तों के प्रति असीम प्रेम दर्शाती है श्रीकृष्ण की रासलीला
लखीसराय। शहर के पुरानी बाजार, किऊल नदी स्थित सूर्यदेव घाट पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महायज्ञ के छठे
लखीसराय। शहर के पुरानी बाजार, किऊल नदी स्थित सूर्यदेव घाट पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महायज्ञ के छठे दिन वाराणसी से आए कथावाचक अध्यात्मिक प्रवक्ता आचार्य शैलेश तिवारी ने कहा कि भक्तों के प्रति भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला असीम प्रेम को दर्शाता है। भगवान भी भक्तों के वशीभूत होकर उनके साथ नाचते और गाते हैं। जिस परमपिता परमेश्वर के इशारे पर ब्रह्मा, रूद्र, गणेश, सूर्य, चंद्रमा नाचते हैं आज वहीं गोपियों के संग रासलीला रचकर उनके इशारे पर नाच रहे हैं। यह श्रीकृष्ण की लीला है। श्रीकृष्ण के रासलील के मोह से भगवान शिव भी नहीं बच पाते हैं। रासलीला के एक प्रसंग में श्री तिवारी ने बताया कि एक दिन ऐसा हुआ कि भगवान बाल गोपाल रूप में गाय चराकर वापस आ रहे थे। रास्ते में ही गोपियां कन्हा को रोक लेती है और रास रचाने लगती है। इस ²श्य को देखकर भोले शंकर में भी भगवान संग रास रचाने की इच्छा जागृत हो जाती है। लेकिन, रासलीला में सिर्फ गोपियों के ही जाने की अनुमति रहती है। ऐसे में भोले बाबा गोपी का स्वांग धारण कर रासलीला में शामिल हो जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की महिमा अपरंपार है। भगवान जब बांसुरी बजाने लगते थे तो जड़ भी चेतन हो जाता था। गोपियां जब खाना बनाती थी तो लकड़ी रूपी जड़ में चेतना आती थी जिससे उसमें आंसू बहने लगता था। गोपियां खाना बनाने के समय भगवान से बांसुरी नहीं बजाने की प्रार्थना करती थी। तब श्रीकृष्ण कहते थे कि मेरे बांसुरी की धुन से तो तेरी रोटियां मीठी बनती है तब तू क्यों रोकती है। गोपियां जब इस प्रसंग की चर्चा की तो भगवान सताने के लिए कभी-कभी खाना बनाने समय बांसुरी बजाते थे। भगवान ने रूक्मिणी से विवाह कर यह संदेश दिया कि भक्तों के लिए भगवान है। महायज्ञ के व्यवस्था में नगर परिषद कर्मी वीरेन्द्र कुमार, डॉ. एसएन भारती, सीता देवी, सुरेन्द्र कुमार, राजेश कुमार, शशिकांत विश्वकर्मा का सराहनीय योगदान रहा। रविनंदन चौधरी, रतन चौधरी, अमित कुमार, शंकर चौधरी सहयोगी के रूप में कार्य कर रहे हैं।