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परंपराओं की उपेक्षा से रोटी के लाले

संसू., मेदनी चौकी (लखीसराय) : दीपावली एवं छठ पूजा पर भी परंपरा से दूर बदलता परिवेश हावी होते जा रहा

By Edited By: Published: Wed, 22 Oct 2014 06:46 PM (IST)Updated: Wed, 22 Oct 2014 06:46 PM (IST)

संसू., मेदनी चौकी (लखीसराय) : दीपावली एवं छठ पूजा पर भी परंपरा से दूर बदलता परिवेश हावी होते जा रहा है। यही वजह है कि आधुनिकता ने कुम्हार समाज के पारंपरिक रोजगार को अनुपयोगी बना दिया है। जिससे उक्त जाति के लोगों को रोजगार के लिए देश के विभिन्न शहरों में जाना पड़ रहा है। वर्षो से दीपावली पर्व में मिट्टी के दीये, छोटा घड़ा, तराजू आदि खिलौने हर घर में बड़े ही उत्साह से लोग खरीदते थे और घरौंदा बनाकर उसमें मुढ़ी एवं चीनी की बनी मिठाई (खिलौना) भरकर घर के बच्चे पूजा किया करते थे। परंतु आज बदलते परिवेश में उक्त मिट्टी के बर्तन की जगह प्लास्टिक एवं चायनिज खिलौने एवं बिजली पर जलने वाले सजावटी मोमबत्ती एवं बल्ब लोगों की पसंद बन गई है। जिससे लोगों में मिट्टी के बर्तन एवं दीये की उपयोगिता ही खत्म हो गई है। यही कारण है कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार समाज के समक्ष अपने पारंपरिक रोजगार से मोह भंग हो गया है। क्षेत्र के खावा ग्रामवासी रामचंद्र पंडित एवं रामकिशुन पंडित बताते हैं कि पहले के समय में दीपावली पर्व के महीनों पहले से मिट्टी के खिलौने एवं बर्तन बनाने पड़ते थे और अच्छी खासी कमाई भी हो जाती थी। लेकिन अब तो इक्का-दुक्का पुराने लोग ही मिट्टी के समान पसंद करते हैं। वे बताते हैं कि अब तो लोग छठ पूजा में भी पीतल के बर्तन का इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि हमारे पारंपरिक रोजगार में नई पीढ़ी की दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में अन्य तरह का काम कर अपना भरण-पोषण करने की उन लोगों की विवशता हो गई है।


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