भारत मां का तिलक, करो सब चंदन...
किशनगंज : दैनिक जागरण की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने शहरवासियों का दिल जीत लिया। गुरुवार
किशनगंज : दैनिक जागरण की ओर से आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने शहरवासियों का दिल जीत लिया। गुरुवार की रात एमजीएम मेडिकल कॉलेज में आयोजित सम्मेलन में काफी संख्या में पहुंचे श्रोताओं ने कार्यक्रम का लुत्फ उठाया। कवियों द्वार प्रस्तुत हास्य व्यंग्य से भरपुर कविता से श्रोता इतने गदगद हो गए कि कवियों से वंस मोर कहते दिखे। कवि सम्मेलन शुरू होने में थोड़ा समय जरूर लग गया लेकिन दर्शक डटे रहे और जैसे-जैसे कवियों ने समा बांधना शुरू किया दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी। कवि सम्मेलन का लुत्फ उठाने के लिए एमजीएम के छात्र-छात्राएं, महिलाएं सहित पुरुष श्रोता काफी खुश नजर आ रहे थे। कार्यक्रम आरंभ होने के बाद श्रोता कविताएं सुनने में इस कदर डूबे कि देर रात तक अपनी सीट पर जमे रहे।
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फोटो 26 केएसएन 47
कविता मदन मोहन समर :
भारत मां का तिलक,
करो सब चंदन,
अक्षक रोली से
आज तिरंगा ऊंचा,
कर दो ऊंचा इनकलाब की बोली से,
एक प्रश्न तुम और जोड़ दो,
भारत के उत्थान का,
कौन रास्ता रोक सका है,
जन ज्यावत तूफान का,
संकल्पों के सादक हो तुम,
साहस भरी तुम उड़ान हो,
मुकुट तुम्ही हो,
भारत माता तुम ही हो,
तुम ही हिन्दुस्तान हो,
तुम ही शीवाजी की हुंकार,
राना की तलवार तुम हीं संखनाद हो भगत ¨सह,
उद्यम की ललकार तुम ही हो,
तुम ही सुनीता बिलियन हो,
तुम ही साहस भरी कहानी हो,
इंदिरा हो तुम, तुम ही लाल बहादुर,
तुम ही अटल बिहारी,
तुम ही भिमराव,
जय प्रकाश हो,
नेहरु की फूलबारी हो,
गांधी की तुम परम अ¨हसा,
नेताजी का नारा,
तुम ही इरादे पटेल के हो,
तुम कलाम की धारा हो,
अन्याय का उत्तर देता नीतिगत संग्राम तुम हीं,
लोकतंत्र में ¨सघासन को कश्ती लगाम तुम हीं,
स्वाभिमान की नई कहानी वाला,
पन्ना तुम ही तो हो,
जन्नत से तन झुका देने वाला अन्ना तुम ही हो,
तुम ही समय की परिभाषा,
निर्णय हो निर्णायक हो,
बंदेमातरम दीप तुम ही हो,
जन-गन-मन अधिनायक हो,
बंदेमातरम तुम ही हो,
जन-गन-मन अधिनायक हो।
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फोटो 26 केएसएन 44
कविता दिनेश दिग्गज :
रात के 9 बजे मेरी पत्नी ने डाय¨नग टेबुल पे खाना लगाया
मेरी पत्नी मुझसे कहने लगी दाल कैसी बनी चावल कैसी बनी,
मैंने कहा खाक बनी बार-बार कंकड़ आए, बीन नहीं सकती थी क्या,
कहने लगी चीखों मत इस बात पर कुछ कहूंगी तो तर्क बढ़ेगा,
देने के नाम पर भगवान ने तुझे भी 32 दांत दिए हैं।
ये दो चार कंकड़ चवा ले तो कौन सा फर्क पड़ेगा।
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दिनेश दिग्गज
मेरा पड़ोसी मिस्टर संतोषी 15 वर्ष बाद अफ्रिका से लौट कर आया,
तो स्वागत के लिए एयरपोर्ट पे खड़ी बेहद बदसूरत उसकी पत्नी खड़ी थी,
पत्नी को उसने गले से लगाया,
झूम कर गाने लगा,
ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना है,
तू हीं तो मेरी कैटरीना है,
मैं पास में खड़ा था,
मैंने कहा ओ संतोषी क्यों भावनाओं में बहता है
इतनी बदसूरत पत्नी है फिर भी उसे कैटरीना कहता है।
वो बोला दिग्गज जी यूं तो आपकी कलम बात सच लिखेगी,
लेकिन आप भी 15 साल अफ्रिका में रह कर आ जाओ,
आपको भी आपकी बीबी कैटरीना ही दिखेगी।