तटबंध तो बना मगर मिटा नहीं अभिशाप
कटिहार नीरज कुमार। कोसी व सीमांचल के जिलों में बहने वाली महानंदा नदी नहीं बल्कि इस पर ब
कटिहार नीरज कुमार। कोसी व सीमांचल के जिलों में बहने वाली महानंदा नदी नहीं बल्कि इस पर बनाए गए तटबंध लोगों के लिए अभिशाप साबित हो रही है। पश्चिम बंगाल में 60 के दशक में मिलेनियर तटबंध परियोजना की शुरुआत होने के बाद इससे सीमावर्ती जिलों में बाढ़ व कटाव की समस्या को देखते हुए करोड़ों की राशि से महानंदा नदी पर तटबंध बनाने की योजना बिहार में शुरू की गयी। इस परियोजना का उद्देश्य बाढ़ व कटाव से सुरक्षा के साथ ¨सचाई के लिए भी बनाया गया।
परियोजना के तहत तटबंध पर कई स्थानों पर स्लुइस गेट ¨सचाई के मकसद से बनाने की रूपरेखा भी तैयार की गयी, लेकिन वर्ष 1980 में तटबंध परियोजना का काम पूरा होने के बाद भी लोगों को कटाव व बाढ़ की समस्या से मुक्ति नहीं मिल पायी। करोड़ों की राशि इस परियोजना पर खर्च की गयी। कटाव रोकने के लिए हर वर्ष फ्लड फाइ¨टग के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं।
अब तक 467 करोड़ की क्षति का अनुमान
आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1980 से लेकर 2002 तक ही बाढ़ व कटाव से 467 करोड़ की क्षति सिर्फ कटिहार में हो चुकी है। अब तक छह अरब से अधिक का नुकसान हो चुका है। क्षति महानंदा पर तटबंध निर्माण व कटाव निरोधी कार्य पर खर्च किए जाने वाली राशि से अधिक है। तटबंध निर्माण के बाद कटिहार को कुल 13 बार बाढ़ की विभीषिका का सामना करना पड़ा है। अमदाबाद, मनिहारी, कुर्सेला, आजमनगर एवं प्राणपुर प्रखंड में 11 बार कटाव की भीषण तबाही लोगों को झेलनी पड़ी है। कटाव के कारण 40 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। इनमें कई विस्थापित परिवार दूसरे राज्यों में बस चुके हैं। एक दर्जन से अधिक गांवों का अस्तित्व भौगोलिक मानचित्र से गायब हो चुका है।