आस्था की डोर ने तोड़ी धर्म की दीवार
=रेहाना दस वर्षो से कर रही है लोकआस्था के महापर्व छठ को = विधि-विधान से करती है कद्दू भात, खरना और
=रेहाना दस वर्षो से कर रही है लोकआस्था के महापर्व छठ को
= विधि-विधान से करती है कद्दू भात, खरना और पूजा अर्चना
-दिग्धी कटिहार की रेहाना को आरंभ में करना पड़ा विरोध का सामना
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संवाद सहयोगी कटिहार: आस्था की मजबूत डोर के सामने हर दीवार कमजोर पड़ जाती है। इसे साबित कर दिखाया है कटिहार शहर के दिग्धी मोहल्ले की रहने वाली 40 वर्षीय रेहाना खातून ने। रेहाना पिछले दस साल से छठ पूजा करती आ रही है। हिन्दू महिला की तरह रेहाना भी दीपावली के बाद से ही लोकआस्था के महापर्व छठ की तैयारी में जुटी रहती है। इस बीच उसके घर में मांस-मछली पूरी तरह वर्जित रहता है। नहाय खाय व खरना भी वह पूरी विधि-विधान से करती है। निर्जला व्रत रखते हुए जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य की पूजा करने के साथ अर्घ्य देती हैं।
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आस्था के चलते खिची चली आयी छठ घाट तक
इस संबंध में रेहाना बताती है कि बचपन से ही वह विभिन्न बीमारियों से ग्रसित रहती थी। काफी इलाज के बाद भी उसे रोग से मुक्ति नहीं मिल रही थी। यह क्रम निकाह के बाद भी जारी रहा। इससे परिवार के लोग भी तनाव में रहते थे। इसी बीच एक हिन्दू महिला ने ही उन्हें छठ मइया की शरण में आने की सलाह दी। रेहाना को भी लगा की सूर्य उपासना से वह स्वस्थ्य हो जायेगी। इस स्थिति में उन्होंने छठ पर्व करने की ठानी। इसमें उसके परिवार के लोगों ने भी उसका पूरा सहयोग किया और सार्वजनिक छठ घाट पर सभी के साथ ही रेहाना छठ पर्व करने लगी।
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शुरुआती दौर में झेलना पड़ा समाज का विरोध
बतौर रेहाना आरंभिक दौर में समाज के कुछ लोगों ने उसके इस कदम का विरोध किया। पर उसकी स्थिति-परिस्थिति व रेहान के दृढ़ निश्चय को देखते हुए समाज ने भी विरोध करना छोड़ दिया। अब तो कई लोग छठ पर्व पर उसका सहयोग भी करते हैं।
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क्या कहती हैं रेहाना
रेहाना के अनुसार छठ लोक आस्था का महापर्व है। इसमें जाति व धर्म का कोई मायने नहीं है। छठ घाट पर हर दूरियां मिट जाती है। यहां जाति-पाति, धर्म-सम्प्रदाय अथवा ऊंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं रहता है। यह एक महापर्व है। जो हमारे समाज व देश को एक सूत्र में पिरोने का भी काम करता है।