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तटबंध तो बने मगर नहीं मिल पाई बाढ़ से मुक्ति

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 06:30 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 06:30 PM (IST)
तटबंध तो बने मगर नहीं मिल पाई बाढ़ से मुक्ति

:: महानंदा पर बांध बनने के बाद 66 गांवो के लोग झेल रहे विस्थापन का दंश

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::पानी का फैलाव बढ़ने से 60 हजार हेक्टेयर में लगी फसल होती है बर्बाद

::गंगा की तलहटी में सिल्ट जमा होने से महानंदा ढ़ाती है कहर

::जिले के पांच प्रखंड के लिए अभिशाप बना तटबंध

::पूरी नहीं हुयी तटबंध निर्माण की अवधारणा

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नीरज कुमार, संवाद सूत्र, कटिहार: कटिहार, किशनगंज एवं महानंदा क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से निजात दिलाने के लिए महानंदा नदी पर बनाए गए तटबंध क्षेत्र के लोगों के लिए अभिशाप ही साबित हो रही है। 70 के दशक में इस परियोजना को प्रशासनिक स्वीकृति मिलने के बाद महानंदा नदी पर तटबंध का निर्माण कराया गया था। लेकिन तटबंध निर्माण की अवधारणा पूरी तरह सफल नहीं हो पायी। जिले के झौआ से चौकिया पहाड़पुर तक तटबंध बनने के बाद 66 गांवो में पुनर्वास की समस्या जस-तस बनी हुयी है। वर्ष 1987 में प्रलंयकारी बाढ़ के कारण महानंदा तटबंध कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त हुयी थी। सिर्फ कटिहार जिले की बात करें तो 1980 में आयी बाढ़ के कारण नौ प्रखंडो के 496 गांवो के करीब छह लाख लोग प्रभावित हुए थे। वर्ष 1991 में आयी बाढ़ के कारण 11 प्रखंडो की डेढ़ लाख आबादी तथा एक लाख एकड़ में लगी फसल बर्बाद हुयी थी। इस वर्ष भी महानंदा नदी के पानी के फैलाव के कारण कदवा एवं प्राणपुर प्रखंड में सैकड़ो की आबादी प्रभावित हुयी है। कदवा प्रखंड के ही 12 पंचायतो की पचास हजार आबादी पुनर्वास के लिए आज भी बाट जोह रही है। हर वर्ष महानंदा नदी में आने वाली बाढ़ को देखते हुए 1957 में बाढ़ नियंत्रण के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। लेकिन इस समिति ने महानंदा नदी पर कुछ क्षेत्रों में ही तटबंध का निर्माण कर बाढ़ को नियंत्रित करने की बात कही थी। गंगा नदी की तलहटी में सिल्ट जमा होने के कारण महानंदा का पानी बड़े क्षेत्र में फैलने के कारण चार महीनों तक जल जमाव रहने से खेती पर विपरित असर पड़ता है। बाढ़ की स्थिति में पुनर्वास पर कम खर्च, बाढ़ की अवधि कम होने, फसलों की क्षति कम होने जैसी अवधारना पर तटबंध निर्माण की योजना पर काम शुरू किया गया था। लेकिन चार दशक बाद भी महानंदा क्षेत्र की लाखों की आबादी बाढ़ की वीभिषिका झेलने को विवश है। बाढ़ और कटाव के समय राहत और पुनर्वास के नाम पर महज औपचारिकता ही पूरी की जाती है।


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