लीड- पानी के सैलाब में डूब गई तटवासियों की रोजी-रोटी
संवाद सूत्र, मनिहारी (कटिहार) : चुनावी बेला में विस्थापित परिवारों की झोपड़ी में प्रत्याशी व उनके समर्थक वोट मांगने पहुंच रहे हैं। वहीं कटाव पीड़ित विस्थापितों में टीस-खीझ है कि उनकी समस्या को कम करने के विकल्प पर काम नहीं हुआ और न ही पुनर्वास किया गया। विस्थापित स्थल पर शुद्ध पेयजल, शौचालय और विद्युतीकरण करके विस्थापितों के दर्द पर मरहम लगाया जा सकता था।
शिक्षा, शुद्ध पेयजल, बिजली आदि कई मूलभूत समस्याओं से जूझने को मजबूर है कटाव से पीड़ित विस्थापित परिवार बांध, सड़क आदि ऊंची सरकारी जमीन पर खानाबदोश की जिंदगी वर्षो से व्यतीत कर रहे हैं। इन कटाव पीड़ितों को वर्षो से पुनर्वास की आस पर पानी फिर रहा है।
गंगा-महानंदा नदी के रौद्र रूप के आगे कई गांव-कस्बे साल दर साल समाहित होते गए। कृषि योग्य भूमि का बड़ा भू-भाग कटाव से नदी में समा गया। इससे कृषि पर आधारित परिवारों की माली हालत खराब हुई है। यह अलग बात है कि वोट मांगने के लिए पहुंच रहे लोग कटाव से विस्थापित परिवारों की समस्या का समाधान लोकतांत्रिक तरीके से कानून के दायर में रहते हुए कराने का यादगार प्रयास नहीं किया गया। अपवाद महानंदा बेसिन योजना है, जो कच्छप गति से चल रहा है। इस योजना के पूर्ण होने पर महानंदा व उससे जुड़ी नदियों के तट पर बसे लोगो को कटाव से मुक्ति मिल जाएगी। यह योजना लगभग आठ-दस वर्षो तक ठंडे बस्ते में रही। गत विधानसभा चुनाव के पहले कटिहार जिले में स्थित महानंदा नदी पर इस योजना से काम शुरू हुआ। इस योजना के पूर्ण होने पर कटिहार, पूर्णिया व किशनगंज जिले के तटवासियों की दुख भरी जिंदगी खुशियों की बहार लौट आएगी। कांटाकोश, नवरसिया, टोपरा चौकिया पहाड़पुर तटबंध के अंश, कारी कोशी बांध, निर्माणाधीन पुराना रेफरल अस्पताल, मारा लाइन, सिग्नल टोला के पास, चरवाहा विद्यालय सहित अन्य ऊंची जगहों पर ये विस्थापित परिवार झोपड़ी डालकर रह रहे हैं।
क्षेत्र के मदारी चक, कमालपुर, बैद्यनाथपुर, मिर्जापुर, अमरीबाद, मेदनीपुर, लक्ष्मीपुर, डुमरिया, कुसहा, रामायणपुर, गोलाघाट, चौकचामा सहित दर्जनों गांव, टोले, गंगा-महानंदा नदी के तांडव से समाप्त हो चुके हैं। कई गांव निशाने पर हैं। गंगा कटाव से बेघर हुए मेदनीपुर के कई लोग पुराना निर्माणाधीन रेफरल अस्पताल में शरण लिए हुए हैं। विस्थापित हेमचंद्र सिंह, सुरेश कुमार ने बताया कि 1999 में कटाव से उनका परिवार बेघर हो गया। तब पुराना रेफरल अस्पताल निर्माणाधीन था जहां वे आकर बस गए। विस्थापित परिवारों के अनुसार वहां न शौचालय है न पीने का शुद्ध पेयजल। बिजली तो दूर की बात हैं। कहते हैं चुनाव के समय नेता आते हैं, वादे करते हैं आश्वासन भी मिलता है, लेकिन हकीकत अब तक उलट है।
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नगर पंचायत बनाने के वादे पर नहीं हुआ अमल
--लोगो --सुध ही नहीं ----
संवाद सूत्र, बारसोई (कटिहार) : बारसोई को नगर पंचायत घोषित करने की मांग पूरी नहीं होने पर स्थानीय लोग ठगा महसूस कर रहे हैं। पिछले वर्ष जब बिहार के मुख्यमंत्री जून में एक पुल का शिलान्यास करने बारसोई आए थे। इस अवसर पर आयोजित शिलान्यास सभा से उन्होंने बारसोई को नगर पंचायत बनाने की प्रक्रिया आज से ही प्रारंभ करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा, प्रमंडलीय आयुक्त को निर्देश दिया जाता है कि जल्द से जल्द प्रक्रिया पूरी करें। इसके बावजूद आज तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। नवम्बर 2013 में बारसोई बाजार के नागरिक रोशन अग्रवाल के द्वारा मुख्यमंत्री सचिवालय में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी का जबाव भी नहीं मिला। लोगों को इस समय मुख्यमंत्री की घोषणा याद आ रही है।
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-मतदाताओं के मन में चल रहा है तूफान
--कानाफूसी --
संवाद सूत्र, बारसोई (कटिहार) : जब से लोकसभा चुनाव 2014 का बिगुल बजा है, तब से मतदाताओं के मन में तूफान चल रहा है। यह अलग बात है कि अंदर ही अंदर चलने वाले इस तूफान के बावजूद ऊपर से बिल्कुल शांति ही शांति दिखाई दे रही है। बाहर से बिल्कुल कुछ भी पता नहीं चल रहा है, लेकिन चाय-पान की दुकानों पर या व्यक्ति चर्चा में अपने मन के तूफान के वेग को व्यक्त कर देते हैं। वैसे, जब पार्टी के प्रचारक पहुंचते हैं तो गांधी जी के तीनों बंदरों के कदम चिन्हों पर चलने लगते हैं। जिसे सभी उम्मीदवार व उनके सहयोगी व समर्थक अपने पक्ष में मान लेते हैं। फिलहाल किसी जमाने में पोस्टर, बैनर, होल्डिंग आदि से समर्थकों का अंदाजा लग जाता था, जो दो-तीन चुनावों से नहीं दिख दे रहा है। सार्वजनिक रूप से कोई भी कुछ भी बोलता दिखाई नहीं दे रहा है। छूटभैये नेता व कार्यकर्ता गण जैसे कहीं गायब हो गए हैं, जबकि संपर्क अभियान, गुपचुप बैठकों का दौर बदस्तूर जारी है।