शासन-प्रशासन को मुंह चिढ़ा रहा अधूरा तालाब
जमुई। नीली क्रांति के उद्देश्य से मत्स्य विभाग ने जीरा पाउंड के रूप में विकसित करने का सपना द
जमुई। नीली क्रांति के उद्देश्य से मत्स्य विभाग ने जीरा पाउंड के रूप में विकसित करने का सपना देखा था। बाद में महत्वपूर्ण स्थान पर अवस्थित होने के नाते जिले के नुमाइंदों ने सौंदर्यीकरण और खोदाई का बीड़ा उठाया। परिणाम जमुई वासियों के सामने है। जहां से जिले में विकास की गंगा बहती है। उसके सामने ही सूखा तालाब पड़ा है। तालाब सूखने का कारण यह नहीं कि जिले में तालाब के लिए आवंटन का सूखा हो पर इच्छाशक्ति का अभाव अवश्य कहा जा सकता है। समाहरणालय और मत्स्य विभाग के मध्य में अवस्थित तालाब और सौंदर्यीकरण के लिए शुरू किया गया अधूरा कार्य आज भी शासन-प्रशासन को मुंह चिढ़ा रहा है। तालाब जानवरों का चारागाह बना हुआ है। मृतप्राय: हो चुका तालाब चीख-चीखकर कह रहा है कि डीएम साहब, एक नजर मेरी तरफ भी देख लें। शायद डीएम साहब से लेकर जल संरक्षण, जल संचयन की जिम्मेवारी संभाल रहे किसी अधिकारी ने इस तालाब की सुधि ले ली होती तो जल संरक्षण और जल संचयन के साथ-साथ समाहरणालय के सौंदर्य में चार चांद लग गया होता। स्थानीय लोग इसे प्रशासनिक उदासीनता का शिकार मानते हैं। साथ ही जनप्रतिनिधि को भी इसके लिए जिम्मेवार ठहराते हैं।
बनी थी योजना
बांका से वर्तमान सांसद व तत्कालीन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री की पहल से इस तालाब के सौंदर्यीकरण व जीर्णोद्धार की योजना बनी थी। इसमें दस लाख रुपया सांसद कोष से देना था। साथ ही जिले के तत्कालीन विधायक दामोदर रावत एवं अन्य प्रतिनिधियों को मिलाकर 25 लाख रुपये की योजना बनी थी। ग्रामीण कार्य विभाग ने योजना को मूर्तरूप देने की शुरूआत भी कराई लेकिन बाद में मामला अधर में लटक गया। कॉफी हाउस और रमणिक स्थान बनाने का सपना टूट गया। खामियाजा स्थानीय लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है। हर वर्ष वाटर लेवल नीचे की ओर सरक रहा है।
कहते हैं लोग
अधिवक्ता प्रसिद्ध नारायण ¨सह और रमेशचंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि इस तालाब की उपयोगिता मानव जीवन में फिलहाल कम हो गई है लेकिन तालाबों की अनदेखी भविष्य के लिए घातक सिद्ध होने वाला है। सौंदर्यीकरण कर भले ही आकर्षण का केन्द्र बनाने के बहाने तालाब को जीवित रखने की योजना हो, इस पर अमल करने की जरूरत है। जिला पदाधिकारी को इसके लिए विशेष रूचि लेने की आवश्यकता है।