.. ओर इसी बहाने निकल गया गुब्बार
गोपालगंज। बात शनिवार की ही है। शहर के बीचोबीच कलेक्ट्रेट में अलग ही माजरा दिखा। यहां अम
गोपालगंज। बात शनिवार की ही है। शहर के बीचोबीच कलेक्ट्रेट में अलग ही माजरा दिखा। यहां अमूमन लोग अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए पहुंचते हैं। लेकिन यहां तो दो अभियंता ही मामला फंसाए दिख रहे थे। दोनों ओर से धक्का-मुक्की व हाथापाई चल रही थी। जेई साहब की उंगलियों के अलावा चेहरे से भी खून टपक रहा था। लोगों की भारी भीड़ जमा थी। हरेक व्यक्ति इनकी बातों को सुनने के लिए उनके नजदीक पहुंचने को बेताब था। कई लोगों ने मोबाइल कैमरा तक लगा लिया था। आखिर लगाए क्यों नहीं? इस धक्का-मुक्की में दोनों अपने मन की गुब्बार भी निकाल रहे थे। लंबे समय से दोनों के मन में एक कसक थी। जो निकल ही नहीं रही थी। दोनों के बीच मारपीट हुई तो दोनों ने जमकर भड़ास निकली। दोनों अभियंताओं के बीच मारपीट के सैकड़ों लोग गवाह बने।
विवाद दोपहर बाद बैठक के दौरान शुरु हुआ। विवाद चंद मिनट में ही गाली-गलौज व मारपीट तक पहुंच गया। दोनों ने एक दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाया। लेकिन इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच दोनों ने मनरेगा में चल रहे खेल की भी कलई खोल दी। छोटे साहब ने तो बड़े साहब का चिट्ठा खोल दिया। छोटे साहब ने यहां तक कह दिया कि बड़े साहब गोपालगंज अनुमंडल में तैनात हैं, लेकिन हथुआ अनुमंडल में चलने वाले मनरेगा के कार्यों में भी उनकी दखल रहती है। साहब को हथुआ अनुमंडल के कार्य का एमबी को चेक करने का शौक चढ़ा है। छोटे साहब ने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि एमबी चेक करने के नाम पर रिश्वत की मांग की जा रही है। दोनों के बीच विवाद के बीच गाली-गलौज का स्तर इतना नीचा था कि ऐसी गाली शायद झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले भी ना दें। बहरहाल जब दोनों का झगड़ा थमा को बड़े अधिकारियों ने पूरे मामले में चुप्पी साध ली। मामला थाने तक भी नहीं पहुंचा। दोनों के विवाद को मैनेज करने की कवायद शुरू कर दी गई। लेकिन दोनों के झगड़े के मनरेगा के कार्य पद्धति की कलई जरूर खुल गई। मनरेगा में चल रहे खेल को तो छोटे साहब ने सरेआम वीडियो रिकार्डिंग में व्यक्त कर दिया। बड़े साहब ने भी अपनी सफाई में मनरेगा के खेल के बारे में कई नई बातें कह दी। अब दोनों का गुब्बार शांत हो गया है।
और अंत में
ठेंगे पर मानक
नौकरी संविदा की हो अथवा स्थाई। नौकरी करने वालों को एक स्थान पर बने रहने के लिए मियाद तय की गई है। इस मियाद में बाबू भी फंसते हैं। तीन साल की मियाद पूर्ण करने वाले बाबूओं को भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज दिया जाता है। लेकिन मनरेगा के अभियंताओं के लिए मानों कोई मियाद ही नहीं है। अभी शनिवार को शांति भंग करने वाले बड़े साहब की ही ले लें। जनाब तीन साल कौन कहे, करीब छह साल से एक ही स्थान पर जमे हैं। लेकिन क्या मजाल कि उनका कोई कुछ बिगाड़ ले। कलेक्ट्रेट में साहब ने मारपीट की। इसकी छोटे कर्मियों तक ने ¨नदा की। लेकिन साहब इसके बाद भी बड़े अधिकारियों के पास जाकर जम गए। उनके चेहरे पर इस घटना की शिकन तक नहीं है। उन्हें विश्वास है कि पूर्व की तरह इस बार भी मानक ठेंगे पर ही रहेगा और वे अपने पद पर जमे रहेंगे।