रमजान में बढ़ जाता है तीसरे अशरा का महत्व
गोपालगंज। रमजान शरीफ का हर पल शबाब और नेकी बटोरने का है। इस माह में अच्छे कामों क
गोपालगंज। रमजान शरीफ का हर पल शबाब और नेकी बटोरने का है। इस माह में अच्छे कामों का शबाब कई गुणा बढ़ा दिया जाता है। इस माह का तीसरा अशरा गुनाहों से निजात का होता है। जहन्नुम की आग को बंदा अपने नेक अमल से बुझा सकता है। इस माह मे नेक अमाल में एत्तेकाफ शबे-ए-कदर की बेदारी यानि इस रात में जग कर रात भर इबादत करना, सदका-ए-फितर की अदायगी और पूरे माह के रोजे, अगर कोई बंदा रखता है तो वह बहुत बड़ा खुशनसीब है। साथ ही वह इस माह में अपने नेक अमाल को झूठ, गीवत, चुृगली और गाली-गालौज से पाक रखे तो यह पवित्र माह इसके जहन्नम के आग को बुझा सकता है।
स्थानीय दरगाह शरीफ के इमाम कहते हैं कि यह तीसरी रमजान के सूरज डूबने के पूर्व जामा मस्जिद में एक मुसलमान बैठता है। जब तक कि ईद की चांद न निकल जाए। यह दस दिन मस्जिद में ही रहेगा, केवल अपनी जरुरत के अनुसार पेशाब आदि के लिए बाहर निकल सकता है। एत्तेकाफ का पहला मतलब यह है कि बंदा अपनी परेशानी को अपने रब की चौखट पर रख देता है और दस दिनों के लिए दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग होकर अपने रब को राजी करने में लग जाता है। अल्लाह पाक ने भी फरमाया है कि एत्तेकाफ करने वाले का उठना-बैठना, सोना-जागना सब इबादत में शुमार किया जाएगा। एक हदीश-ए-कुरेशी में है कि रोजे मेहसर के दिन परवरदिगार बंदों से कहेगा कि मैं भूखा था, प्यासा था और रोगी था तूने मेरी देख-भाल न की, मुझे खिलाया-पिलाया नहीं तो बंदा जबाब देगा कि या अल्लाह तू तो खाने-पीने, बीमार होने से दूर है तो अल्लाह का फिर जबाब होगा कि अगर तू अपने पड़ोस के गरीबों की यतीमों, मिस्किीनों की सहायता करता तो मुझे सहायता करता। मदरसा में पढ़ने वाले गरीब छात्र-छात्राएं रमजान शरीफ की जकात और सदका-ए-फितर का जरुरतमंद है।