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¨सचाई के समय दगा दे रही सरकारी व्यवस्था

मानसून के सहारे धान का बिचड़ा गिराने के बाद किसान एक बार फिर से बारिश की आस में हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 03:01 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 03:01 AM (IST)
¨सचाई के समय दगा दे रही सरकारी व्यवस्था
¨सचाई के समय दगा दे रही सरकारी व्यवस्था

गोपालगंज। मानसून के सहारे धान का बिचड़ा गिराने के बाद किसान एक बार फिर से बारिश की आस में हैं। धान की रोपनी अब शुरू होने वाली है। लेकिन किसानों को मानसून का साथ नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर ¨सचाई के लिए बनी सरकारी व्यवस्था भी दगा दे रही है। जिले में लगे अधिकांश नलकूप बंद पड़े हैं और नहरों का पानी भी खेत के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच रहा हैं। ऐसे में बारिश नहीं होने से धान की फसल को एक बार फिर नुकसान पहुंचने की संभावना है। ऐसे में धान का बिचड़ा गिराने से लेकर उन्हें बचाने तक के लिए किसान निजी पंप से ¨सचाई करने के लिए विवश हैं। ऐसा तब है जबकि जिले में फसलों की ¨सचाई के लिए नहरों को जला बिछा है तो सरकारी नलकूपों की भी व्यवस्था की गई है। लेकिन खेतों की ¨सचाई के समय यह सरकारी व्यवस्थाएं किसानों को दगा दे रही है।

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विभागीय आंकड़े ही किसानों की परेशानी की कहानी खुद कह रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि सरकारी नलकूपों से एक हेक्टेयर जमीन की ¨सचाई में तीन लाख रुपये का खर्च आ रहा है। ऐसा इसलिए कि अधिकांश नलकूप बंद पड़े हैं। हद तो यह कि नलकूप विभाग तथा कृषि विभाग के दावों में भी ¨सचाई के आंकड़ों में काफी फर्क है। कृषि विभाग जहां केवल साढ़े दस हेक्टेयर जमीन की ¨सचाई नलकूपों से होने का दावा कर रहा है तो नलकूप विभाग का दावा 34.10 हेक्टेयर का है। आंकड़ों के अनुसार राजकीय नलकूप विभाग ने जिले में 145 नलकूपों को लगाया है। इनमें से कुछ नलकूप तो आजतक चले ही नहीं हैं। विभाग के दावों को ही सच मानें तो जिले में 74 नलकूप इस समय विभिन्न कारणों से ठप पड़े हुए हैं। शेष 52 नलकूप चलायमान हैं। ये नलकूप वर्तमान समय में 34.10 हेक्टेयर जमीन की ¨सचाई कर रहे हैं। यानि एक नलकूप एक हेक्टेयर भी ¨सचाई का काम नहीं कर पा रहा है। हां, नलकूप विभाग नलकूपों को चलाने के नाम पर सरकार प्रतिवर्ष दो करोड़ छह लाख रुपये खर्च जरूर करता है।

नहरों की दशा भी दयनीय

गोपालगंज : फसलों की ¨सचाई के लिए किसानों को पानी की समस्या से नहीं जूझना पड़े, इसके लिए जिले में नहरों का जाल बिछा है। लेकिन ¨सचाई के समय नहर भी किसानों को दगा दे जाती है। नहरों की बदहाल दशा की कहानी खुद विभागीय आंकड़े ही कहते हैं। आंकड़ों के अनुसार नहर प्रमंडल गोपालगंज 11742 हेक्टेयर खेतों की ¨सचाई करने का लक्ष्य मिला है। लेकिन नहरों से केवल 4745 हेक्टेयर खेतों की ही ¨सचाई हो रही है। कुछ ऐसा ही हाल सारण नहर प्रमंडल भोरे का भी है। इसे 24123 हेक्टेयर खेतों की ¨सचाई का लक्ष्य मिला है। लेकिन इस प्रमंडल की नहरों से 11941 हेक्टेयर खेतों की ¨सचाई हो पा रही है।


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