महिला समूह की शक्ति ने सारिका को बना दिया स्वावलंबी
गया। गरीबी से कभी हार नहीं मानी और अपने आत्मबल की बदौलत संघर्ष करते हुए एक-एक पैसे को जमा कर आज घ
गया। गरीबी से कभी हार नहीं मानी और अपने आत्मबल की बदौलत संघर्ष करते हुए एक-एक पैसे को जमा कर आज घर परिवार का लालन पालन करने की काम सोभ बाजार की सारिका कर रही है।
सारिका ने बताया कि महिला समूह से जुड़ने के बाद उसे काफी मदद मिली और समूह से कर्ज लेकर आज श्रृंगार की दुकान चला रही है। इससे दो पैसे की आमदनी होने लगी तो बच्चों को शिक्षित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही।
इतना ही नहीं, यह महिला अपने घर का काम करने के बाद प्राईवेट स्कूल मे बच्चों को पढ़ाने भी जाती है। वहा से भी आमदनी हो जा रही है, जिससे घर को चलाने मे काफी सहयोग होता है। पति भी सारिका को सहयोग कर रहे हैं।
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जीविका से जुड़ने के बाद जमा हुई पूंजी
सारिका कहती हैं कि जीविका से जुड़ने के लिए सामुदायिक समन्वयक राखी दीदी ने समूह में आने के लिए प्रेरित किया। इनके कहने पर गाव के चादनी जीविका महिला समूह मे वर्ष 2015 में सदस्य बनी, जहा सभी महिलाओं के साथ-साथ बचत खाता मे दस रुपया प्रत्येक सप्ताह जमा करने लगी। समूह से बारह महिलाएं जुड़ी हैं। घर मे पैसे की तंगहाली और बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे की चिंता से हम दोनों पति-पत्नी काफी परेशान हो गए थे। पति छोटे वाहन चलाते हैं, जिससे घर का खर्च नहीं चल पा रहा था।
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महिला समूह ने दिया बल
सोभ बाजार में श्रृंगार दुकान खोलने के लिए महिला समूह की महिलाओं ने सारिका को कहा और समूह से कर्ज के तौर पर 80 हजार रुपया दिया। सारिका के पति ओमप्रकाश ने भी अपनी सहमति दे दी। पैसों से भी मदद की। दुकान पर सबसे ज्यादा जीविका महिला समूह की महिलाएं व उनकी बेटिया ही सामान खरीदने आती हैं। इस पैसे से सारिका अपने बच्चों को पढ़ाती है। दुकान चल पड़ी और अब पूंजी कोई समस्या नहीं है।
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स्कूल व पति की कमाई से चल जाता है घर
सारिका कहती हैं कि बचे समय में हम खुद स्कूल मे बच्चों को पढ़ाने के लिए जाते हैं। पति की कमाई और इससे घर चल जाता है।
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तीन सौ महिलाओं को जोड़ रखा है महिला समूह से
जीविका की सामुदायिक समन्वयक राखी कुमारी कहती हैं कि बाराचट्टी क्षेत्र मे आने के बाद जब गाव में महिलाओं से मिली तो महसूस हुआ कि ये कुछ करना चाहती हैं, पर कोई सहयोग करने वाला नही हैं। हमने जिन भी महिलाओं को समूह से जोड़ा लगभग सभी स्वावलंबी हैं। कौन क्या कर सकती हैं, यह देखते हुए उसी काम के लिए सहयोग दिया। समूह में तीन सौ महिलाएं हैं और सब कुछ-न-कुछ कर रही हैं।