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खुद चल नहीं पाते, दूसरों के सपनों को दौड़ा रहे

गया। अगर हौसला बुलंद हो तो मंजिल तक पहुंचना कतई नामुमकिन नहीं है। बस आवश्यकता होती है सपनों में ज

By Edited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 07:31 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 07:31 PM (IST)
खुद चल नहीं पाते, दूसरों के सपनों को दौड़ा रहे
खुद चल नहीं पाते, दूसरों के सपनों को दौड़ा रहे

गया। अगर हौसला बुलंद हो तो मंजिल तक पहुंचना कतई नामुमकिन नहीं है। बस आवश्यकता होती है सपनों में जान भरने की। मानपुर के लक्खीबाग मोहल्ला निवासी बिपिन बिहारी अपने बुलंद हौंसलों से दिव्यांग होने के बावजूद खुद के सपनों को साकार कर रहे हैं। वह स्वयं चलने में असमर्थ हैं, फिर भी पिछले डेढ़ दशक से सैकड़ों बच्चों को निश्शुल्क संगीत सिखा उनके भविष्य को संवारने में जुटे हैं। खास बात यह है कि यह सब वे अपनी निजी राशि से कर रहे हैं। इसमें उन्हें कहीं से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है।

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मूलरूप से जिले के खिजरसराय थाने के उतरावां गांव निवासी बिपिन बिहारी के पिता राजदेव शर्मा पेशे से सरकारी शिक्षक हैं। शारीरिक रूप से दिव्यांग बिपिन अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र हैं। इनका पालन-पोषण देहाती वातावरण में हुआ। उन्होंने 'जागरण' को बताया कि उनके पिता हारमोनियम तथा चाचा तबला वादक थे। वे लोग जब भी कहीं प्रोग्राम में जाते थे तो उन्हें भी अपने साथ ले जाया करते थे। इसी दौरान उन दोनों से प्रेरित होकर वह स्वयं हारमोनियम और तबला बजाने लगे। कुछ ही दिनों में वे दोनों वाद्य यंत्रों को बजाने में पारंगत हो गए।

छोटे बच्चों को देने लगे मुफ्त प्रशिक्षण :

बिपिन बिहारी ने हारमोनियम व तबला सीखने के बाद दूसरों को भी सिखाने की ठानी। उनके द्वारा निश्शुल्क प्रशिक्षण दिए जाने की खबर मिलने के बाद दूरदराज के क्षेत्रों से लोग आने लगे। वह भी उन्हें पूरी तन्मयता से सिखाने लगे। इसमें सर्वाधिक बच्चे शामिल रहे।

सुरधारा नाट्य मंच स्थापित किया :

वर्ष 2014 तक उन्होंने गांव में प्रशिक्षण जारी रखा। इसके बाद ग्रामीण कलाप्रेमियों की एक टीम बनाकर सुरधारा नाट्य कला मंच की स्थापना की। इस मंच को प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से मान्यता मिल गई। मान्यता मिलने के बाद उनको सोनूलाल वर्णवाल प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय में संगीत शिक्षक पद पर नौकरी मिल गई।

मंच का किया विस्तार :

धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बाद उन्होंने मंच का विस्तार किया। इस विस्तार में वह हारमोनियम व तबले के अलावा गिटार, कत्थक नृत्य, पेंटिंग व नाटक का भी प्रशिक्षण देने लगे। आज इस मंच के सहारे करीब तीन सौ लड़के-लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं।

नाट्य पुस्तक भी लिखी :

बिहारी ने एक पुस्तक का लेखन भी शुरू किया है, जिसमें 'जिंदगी का पहला अनुभव' व 'मुझे जीने दो' नामक पुस्तक शामिल है। यह दोनों पुस्तक लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रही है।


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