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माताओं की तरह गाय भी सहती हैं दुख-दर्द

गया, जागरण संवाददाता : मानपुर स्थित गोरक्षिणी में शुक्रवार को गोपाष्टमी के अवसर पर काव्यगोष्ठी का आय

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 08:26 PM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 08:26 PM (IST)

गया, जागरण संवाददाता : मानपुर स्थित गोरक्षिणी में शुक्रवार को गोपाष्टमी के अवसर पर काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता वयोवृद्ध कवि गोव‌र्द्धन प्रसाद सदय ने की। काव्य गोष्ठी का संचालन डा. राधानंद सिंह और सुमंत ने संयुक्त रूप से किया। काव्य गोष्ठी में कई कवियों ने गौ माता से संबंधित कवितायें सुनायी। मुकेश कुमार सिन्हा ने गौ माता की दुर्दशा पर कहा- गैया तू मत घबरा, हर मैया कि यही कहानी। आचल में तो है-दूध, मगर आंखों में पानी। रमेश मिश्र मानव ने गौ रक्षक गोपाल से संबंधित कविता का पाठ किया- श्याम देखे यशोदा घर आये, दिगम्बर सिंधी नाद बजावें। डा. नरेश प्रसाद वर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से नन्दिनी का चित्र खिंचते हुए कहा- लाल-लाल कोमल हे टुसवा नियन देह। लुकलुक बेटिया सोभऽ हे जैसे साझ के। जनकवि सुरेन्द्र सिंह 'सुरेन्द्र' ने जीवन के गीत गाये- कोई नगमा सुना जिन्दगी के लिए, एक दीपक जला रोशनी के लिए। मणिलाल आत्मज ने कलयुगी महाभारत की कल्पना कुछ इन शब्दों में की- पांडव के घर छोड़ पंचाली, अब कौरव घर जाइत हे। डा. राम सिंहासन सिंह ने गीत में गाया- गाने दो कुछ गीत कि मन के दर्द स्वत: मिट जायेंगे। कोई भी सुन हरे घाव पर मलहम नहीं लगायेंगे। सुमंत ने गाय और माय कविता में कहा- गाय हमारी माता है-दुनिया कहती है। कलयुगी पुत्र की माताओं की तरह गायें भी दुख-दर्द सहती हैं। बाल मुकुन्द अगम्य ने अपनी कविता को इन शब्दों में आवाज दी- स्नेह प्रकाश का आधार है, यह तरल है, सुधा या गरल है। डा. सच्चिदानन्द प्रेमी ने प्रेम के गीत गाये- जब मेरे गीतों को गाना, गाना मेरे मीत। डा. राधानंद सिंह ने गांवों से हो रहे पलायन पर अपनी कविता सुनायी- उस दिन जब मैं गांव गया तो, बरगद का पत्ता मुस्काया। कैसे आये शहरी बाबू! गोरक्षण के सचिव मुकेश खंडेलवाल ने कहा-सोने का पिंजरा बना है, उसमें बंद है-गइया। अध्यक्ष गोव‌र्द्धन प्रसाद सदय गौ पर अपनी सारगर्भित कविता का पाठ किया और कहा-अपनी माता, धरती माता, गौ भी अपनी माता है। काव्य गोष्ठी से पूर्व उदय वर्मा, माणिक लाल बारिक, वृजनन्दन पाठक, डा. राजीव पाठक, रमेश कुमार पाठक ने गौ रक्षा से संबेधित अपनी बातों को रखा। गौरक्षिणी की ओर से कवियों व अतिथियों को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।


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