महाबोधि मंदिर बौद्धों को सौंपने की उठी आवाज
जागरण संवाददाता,बोधगया(गया):19वीं सदी में बौद्धधर्म तथा महाबोधि मंदिर के उद्धार के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र संघर्ष को स्थापित करनेवाले अनागरिक धर्मपाल के कृतित्व पर प्रकाश डालने के लिए महाबोधि सोसाइटी द्वारा आयोजित बुद्धिस्ट सेमिनार में महाबोधि मंदिर को बौद्धों को सौंपने की आवाज उठी। पालि-प्राकृत भाषा को बुद्धिस्ट भाषा घोषित करने की भी माग उठी। डा. ब्रजभूषण प्रसाद ने कहा कि सभी धर्म की अपनी भाषा है। लेकिन पालि-प्राकृत को बौद्धधर्म के भाषा का स्थान नहीं मिला है। डा. बल्लभ सिंह ने कहा कि अनागरिक धर्मपाल ने अपने शरीर को तपाकर बौद्धधर्म के उत्थान का प्रयास किया। आज एसी में बैठकर धर्म प्रचार की बातें हो रही है। बौद्ध भिक्षुओं को गांवों में जाकर धर्म का प्रचार करना चाहिए। संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. राणा प्रताप सिंह ने अनागरिक धर्मपाल द्वारा बौद्धधर्म के लिए किए कायरें पर विस्तार से प्रकाश डाला। डा. आभा रानी ने कहा कि अनागरिक धर्मपाल ने विपरीत परिस्थितियों में बौद्धधर्म के विकास और महाबोधि मंदिर को बौद्धों के हाथ सौपने की लड़ाई लड़ी। अमरेन्द्र कुमार सिंह डब्लू ने कहा कि 14 वर्ष की अवस्था में अनागरिक धर्मपाल ने पेनाडोला में बौद्ध धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध की थी। संगोष्ठी को रहुना विश्वविद्यालय,श्रीलंका के कुलपति अगमहापंडित पल्लासारा सुमन ज्योती, अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार विजया एडविन अरियादासा, जीवन संघम के फादर जोस आदि ने संबोधित किया। इस मौके पर श्रीलंकाई बौद्ध मठ के बोधगया प्रभारी भंते के. मेदाकर थेरो एवं श्रीलंका से आए श्रद्धालु मौजूद थे।