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साधना नहीं, कठिन बाधक तत्व है: बापू

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 09:51 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 09:51 PM (IST)

जागरण संवाददाता, बोधगया (गया): बोधगया के कालचक्र मैदान पर रामकथा के पांचवे दिन बुधवार को संत शिरोमणि मोरारी बापू ने कहा कि गुरु व साधु में सहजता, सरलता, शीतलता, समाधि और समाधान हो। वहीं, बुद्ध है। वहीं, गुरू है। उन्होंने सरलता पर विशेष जोर देते हुए कहा कि बुद्ध पुरुष में वाणी की सरलता, अर्थात जब वो बोले तो उसके बोलने में अंतरात्मा का भाव दिखे। जिसमें शीतलता, सहजता, सरलता हो। इसके साथ वेश और व्यवहार की सरलता भी महत्वपूर्ण है। वेश, वाणी, व्यवहार की सरलता, सहजता एवं समाधान के प्रति सकारात्मक ध्येय ही गुरु व साधु में बुद्धत्व के लक्षण प्रकट करते हैं। क्योंकि साधु और गुरु से समाज सीखता है। उसके आचरण में यह सारी चीजें होनी चाहिए। तभी वह समाज को कुछ दे सकता है। जिसके चरणों से विशेष धर्म का जन्म हो। नवजागरण हो, वहीं बुद्ध है। 'जब घबराए मन अनमोल, हे मानव तु मुख से बोल बुद्ध शरणं गच्छामि।'

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उन्होंने प्रसन्नचित्त बुद्ध के लक्षण का वर्णन करते हुए कहा कि जिसका चित्त प्रसन्न हो, उसके लिए हरि का द्वार हमेशा खुला रहता है। जो खुद को प्रसन्न कर लिया, समझो वह ईश्वर को प्राप्त कर लिया। प्रसन्नता के तीन मूलमंत्रों पर प्रकाश डालते हुए बापू ने कहा कि प्रसन्न होने के तीन कुंजी हैं। आग्रह मुदचित्त, शिकायत मुदचित्त और अपवित्र चित्त। बुद्धत्व वो है जिसके चित्त में समाधान हो।

बापू ने बुधवार को छह दिशाओं का वर्णन करते हुए कहा कि पूरब दिशा में माता-पिता, दक्षिण में गुरु, पश्चिम में पत्‍‌नी, उतर में मित्र व स्नेही संबंधी, उपर में साधु-संत व नीचे में सेवक का स्थान होता है। सेवक सदैव चरण धूल का अधिकारी होता है। उन्होंने मानस के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए राजा दशरथ के चारों पुत्र के नामकरण और उसके महत्व को बतलाया। और कहा राम का नाम तो महामंत्र है। जिसके नाम के प्रभाव से वैर ही नहीं वैरी भी समाप्त हो जाता है। भरत- जो सबको भरता हो। जो संपूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करता हो। वहीं भरत है। उसके आचरण को अपनाएं। लक्ष्मण- नाम का प्रभाव है सहयोग करना। देखभाल करना, सुरक्षा प्रदान करना। शत्रुध्न- जो शत्रुओं का ही समापन न करे। बल्कि शत्रुता के भाव का भी समापन करे। उन्होंने राजा दशरथ के चारों पुत्र का यज्ञोपवित संस्कार व गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा के साथ राम व लक्ष्मण को धर्म की रक्षा के लिए विश्वामित्र को सौंप जाने के प्रसंग का विशद वर्णन किया।


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