समय के साथ बढ़ रही शिक्षकों की परेशानियां
शिक्षा के विकास के लिए शिक्षकों का रोल अहम होता है। बगैर शिक्षक के शिक्षा का विकास संभव नहीं है। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा शिक्षा का ज्ञान बांटा जाता है चाहे वे निजी स्कूलों के शिक्षक हो या सरकारी स्कूलों के। पहले के समय में शिक्षकों को सम्मान के नजरों से देखा जाता था। आज समय बदला है।
मोतिहारी। शिक्षा के विकास के लिए शिक्षकों का रोल अहम होता है। बगैर शिक्षक के शिक्षा का विकास संभव नहीं है। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा शिक्षा का ज्ञान बांटा जाता है चाहे वे निजी स्कूलों के शिक्षक हो या सरकारी स्कूलों के। पहले के समय में शिक्षकों को सम्मान के नजरों से देखा जाता था। आज समय बदला है। सरकारी स्कूलों में शिक्षक है लेकिन पहले वाली बात नहीं रह गई है। शिक्षकों के लिए एक खास दिन होता है जो पांच सितंबर के रूप में हर वर्ष आता है। शैक्षणिक योजनाओं में व्याप्त खामियां व सरकारी व्यवस्था की खामियों का दंश शिक्षक झेल रहे है। समय के साथ-साथ शिक्षकों की परेशानियां बढ़ते जा रही है। अगर बच्चों को सही समय पर शैक्षणिक योजनाओं का लाभ नहीं मिला तो इसके लिए जवाबदेह शिक्षकों को बनाया जाता है। जिस पेशे में शिक्षक है, अपने बच्चों को इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने को प्रेरित नहीं करना चाहते है। प्रस्तुत है वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर शिक्षकों के विचार।
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- रामगढ़वा के शिक्षक अर¨वद कुमार पाण्डेय ने कहा कि शिक्षकों के समक्ष आज कई परेशानियां है। जो शिक्षक स्नातक व प्रशिक्षित होते है, सरकारी स्तर पर उनके शिक्षा का स्तर जानने के लिए ऐसे लोगों को लगाया जाता है जो निरक्षर होते है। एमडीएम व शैक्षणिक योजना समय बर्बाद करते हैं। वेतन का भुगतान ससमय नहीं होता है।
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- छौड़ादानों के सत्येन्द्र कुमार यादव ने कहा कि विद्यालय में बहुत दिक्कतें होती है। पहले के समय में शिक्षक अपने बच्चों को इसी क्षेत्र में आने को प्रेरित करते थे लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है। वर्तमान समय में शिक्षक विभिन्न स्तरों पर प्रताड़ित हो रहे हैँ।
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- तेतरिया के सुशील कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि पहले के समय में जब पढ़ाई होत थी तो बच्चा व अभिभावक दोनों विद्यालय में समय देते थे। पहले गुरू व अभिभावक का संबंध बेहतर होता था। आज परिस्थिति बदल चुकी है। विद्यालय की समस्या के कारणों में विद्यालय शिक्षा समिति भी है।
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- मधुबन के विवेक भूषण ने कहा कि आज के समय में विद्यालयों के निरीक्षण का अनुपात काफी बढ़ गया है। बच्चों को समय पर किताब उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना कैसे की जा सकती है। जब अभिभावक ही शिक्षकों को सम्मान नहीं देंगे तो बच्चों द्वारा सम्मान मिलना मुश्किल है।
संपादन : संजय कु. ¨सह
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- ढाका के मो. फखरूद्दीन ने कहा कि शिक्षक सम्मान के भूखे होते है। विद्यालयों में शिक्षकों पर विभिन्न स्तरों पर दवाब बढ़ा है। अर्थ का विद्यालय से जोड़ना समस्या को बढ़ाने का काम किया है। सरकार ने शिक्षकों को ठीकेदार बना दिया। इसी कारण गिरावट आई है। विद्यालयों को अर्थ से अलग कर दिया जाए तो सुधार संभव है।
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- चकिया के सतीश कुमार ¨सह ने कहा कि बच्चों को पाठ्य पुस्तक समय पर नहीं मिलता है। पुस्तक नहीं रहेगा तो बच्चें कैसे पढेंगे। अभिभावक भी अपने रोल को समझे। पाठ्य पुस्तक नहीं मिलता है तो इसे पूछने के लिए कोई नहीं आता है लेकिन अगर किसी बच्चा को योजना का लाभ नहीं मिलता है तो इसकी खोज लेने लोग पहुंच जाते है। ====इनसेट
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