अस्पताल में मनमानी का बोलबाला
दैनिक दैनिक जागरण की टीम ने सोमवार को अपराह्न 12:50 अनुमंडलीय अस्पताल चकिया का जायजा लिया।
मोतिहारी। दैनिक दैनिक जागरण की टीम ने सोमवार को अपराह्न 12:50 अनुमंडलीय अस्पताल चकिया का ऑन द स्पॉट जायजा लिया। इस क्रम में हम कई तरह की समस्याओं से बावस्ता हुए। व्यवस्था कहीं से भी अपेक्षित स्तर की नहीं लगी। कुव्यवस्था की स्थिति सामने थी। लोग परेशान थे। अस्पताल का काम 'अपने' ही तरीके से चल रहा था। हमने अस्पताल के कई हिस्सों का जायजा लिया।
निबंधन शुल्क में भी मनमानी
हम निबंधन काउंटर पर पहुंचे। महिलाएं डॉक्टर से दिखाने के लिये निबंधन करवा रहीं थी। पर्ची बनवाने के लिए निर्धारित शुल्क एक रुपया लिखा गया था। मगर लिया जा रहा था दो रुपये। मरीज रूपा देवी, आशा देवी, आराधना देवी, सुनीता देवी, रौशन खातून समेत दर्जनों महिलाओं ने बताया कि दो-दो रुपये लेकर पर्ची काटी गई हैं। कई मरीजों ने बताया कि यहां हमेशा दो रुपये में ही पर्ची काटा जाता है।
ओपीडी में 32 की जगह मात्र 7 दवाएं
अस्पताल में मरीजों की घटती संख्या की के बारे में पूछे जाने पर दवा वितरण काउंटर पर मौजूद कर्मियों ने बताया कि दवा के अभाव में मरीजों की संख्या बहुत कम हो गई है। पहले जहां 300 से ज्यादा मरीज रोज आते थे। अब 100 से 150 तक आ रहे हैं। जो सात दवा ओपीडी में उपलब्ध था उनमें कुत्ता काटने की सुई, पेट दर्द, लूज मोशन, हृदय रोग, फाइलेरिया, एंटीबॉयोटिक व क ड़ा की दवा शामिल हैं। यहां इमरजेंसी की दवा भी उपलब्ध नहीं हैं। दुर्घटना में घायल मरीजों के परिजन बाहर से दवा मंगवाकर इलाज कराते हैं।
सतरंगी की जगह रंगबिरंगी चादरें
प्रसव के बाद महिलाओं को दी जाने वाली सुविधाएं नगण्य दिखी। बेड पर अलग-अलग रंगों की चादरें दिख रही थीं। वहीं, मरीजों को मिलने वाला भोजन समेत अन्य सुविधाओं का कोई अतापता नहीं था। स्वास्थ्य प्रबंधक ने बताया कि चादर की कमी हैं। जिला को इसके लिए लिखा गया है।
दो बजे के बाद नहीं मिलतीं महिला चिकित्सक
मरीजों ने बताया कि ओपीडी का समय समाप्त होने के बाद यहां कोई महिला चिकित्सक नहीं रहती हैं। रोस्टर में ड्यूटी तो इमरजेंसी का दिखाया जाता हैं, लेकिन इसका पालन नहीं होता है। फिलहाल यहां रश्मि प्रिया, तुलिका व साजिया बदर पदास्थापित हैं। लेकिन दो बजे दिन के बाद प्रसव के लिए आई महिलाओं को या तो पुरुष चिकित्सक या फिर एएनएम के भरोसे रहना पड़ता हैं। बताया गया कि तीनों महिला चिकित्सकों ने अपनी ड्यूटी सप्ताह में दो-दो दिन का बांट लिया है। शेष समय वे अपना निजी क्लिनिक चलाती हैं।
कहते हैं चिकित्सक
ओपीडी में रोगियों का इलाज कर रहे डॉ. परवेज ने टीम को बताया कि दवा नहीं रहने के कारण यहां मरीजों की संख्या आधी से भी कम रह गई हैं। पिछले वर्ष अक्टूबर में सिविल सर्जन ने अनियमितता पाकर अल्ट्रासाउंड को सील कर दिया था, जो अब तक बंद पड़ा है। इससे भी मरीजों की संख्या घटी हैं। पर्ची काटते समय एक की जगह दो रुपये लेने के संबंध में बताया कि इसकी शिकायत उन्हें भी मिलती है, लेकिन इसपर कार्रवाई तो प्रभारी ही कर सकते हैं।