दिल से निकली कविता में होता आकर्षण : डॉ.तरुण
आज की कविता भवनात्मक संतुष्ट नहीं देती। क्योंकि, आज कविता दिल से नहीं दिमाग से लिखी जाती है। ऐसी कविता व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती।
दरभंगा। आज की कविता भवनात्मक संतुष्ट नहीं देती। क्योंकि, आज कविता दिल से नहीं दिमाग से लिखी जाती है। ऐसी कविता व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती। लनामिविवि के ¨हदी विभाग में एक संक्षिप्त व्याख्यान के क्रम में शनिवार को पटना विवि के प्राचार्य डॉ. तरुण कुमार ने ये बातें कही। उन्होंने कहा कि कविता का छंद लय, तुक व मिथक से जुड़ाव कम हो गया है। फलत: कविता आम अवाम से दूर हो रही है। ¨हदी के प्रसिद्ध आलोचक डॉ. तरुण ने कहा कि जनता की साधारणता और कविता की असाधारणता में द्वन्द्व होता है। सरल भाषा वाली कविता का अर्थ कठिन हो सकता है। लेकिन, भाषा वाली कविता सरल हो सकती है। आज दिल से कविता नहीं लिखे जाने के कारण यह पाठकों को आकर्षित नहीं कर पाती है। तुलसी, दिनकर, बच्चन आदि की कविता दिल से निकली इसलिए यह बांधती है। विभागाध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. चंद्रभानू प्रसाद ¨सह ने किया। मौके पर डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन, डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता, संकायाध्यक्ष डॉ. यूएल ठाकुर, डॉ. वीके ¨सह, डॉ. महेश ¨सह चौरसिया, ऋचा मिश्रा सहित कई छात्र-छात्राएं मौजूद थे।