छात्र 3 व शिक्षक 6 से संभव नहीं साहित्य का विकास: प्रो. साकेत
मानविकी संकायों में छात्रों की घट रही संख्या ¨चता जनक है। शिक्षकों को इस बात के लिए ¨चतन करना चाहिए।
दरभंगा। मानविकी संकायों में छात्रों की घट रही संख्या ¨चता जनक है। शिक्षकों को इस बात के लिए ¨चतन करना चाहिए। छात्रों की संख्या में कमी से भाषा व साहित्य का विकास बाधित होता है। वीसी प्रो. साकेत कुशवाहा ने शनिवार को पीजी मैथिला विभाग में आयोजित सेमिनार के उद्घाटन संबोधन में ये बातें कही। मैथिली साहित्य में 2011 से 2015 तक का विकास से संबंधित यूजीसी प्रायोजित इस सेमिनार में भाषण के दौरान ही वीसी प्रो. कुशवाहा ने मानविकी के सभी विभागाध्यक्षों से सभा में ही छात्रों की संख्या के बारे में पूछा। साथ ही शिक्षकों को दायित्व बोध कराते हुए कहा कि वे सब छात्रों की संख्या बढ़ाने के प्रयास करें। बीज भाषण में डॉ. भीम नाथ झा ने कहा कि 5 वर्षों में मैथिली साहित्य के विभिन्न विधाओं में 5 सौ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हुए हैं। इससे पहले दस वर्षों में जितनी पुस्तक प्रकाशित हुई उसके करीब तक यह काल पहुंच गया। वहीं अध्यक्षीय संबोधन में बीआरए बिहार विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र झा ने बड़े ही वेबाकी से वीसी का ध्यान अपनी ओर ¨खचते हुए कहा कि शिक्षक का काम पढ़न- पाढ़न का है न कि छात्र लाने का। नियुक्त पत्र में भी यही बातें लिखी रहती है। मैथिली में अपने संबोधन से कई शिक्षकों का सीना चौड़ा हो रहा था। उन्होंने कहा कि मैथिली भाषा व साहित्य काफी समृद्ध है। वहीं कोल्हान विवि के प्रॉक्टर डॉ. अशोक कुमार झा अविचल ने मैथिली साहित्य के पंचवर्षीय विकास को सराहा। सेमिनार का दूसरा सत्र प्रो. धीरेंद्र नाथ झा की अध्यक्षता में हुई। इस सत्र में डॉ. अजीत मिश्र, डॉ. नरेंद्र झा, सुमित आनंद, सुरेश पासवान, रागिनी रंजन, स्वीटी कुमारी, सोनी कुमारी, सत्येंद्र कुमार झा, सुरेंद्र भारद्वाज, अर्चना कुमारी ने अपने आलेख वाचन किया। समापन सत्र में प्रोवीसी प्रो. एस मुमताजुद्दीन ने पांच वर्षों में मैथिली साहित्य के प्रकाशन पर संतोष जताते हुए इन वर्षों में कुछ मूर्धन्य विद्वानों के देहांत होने पर दुख भी प्रकट किया। पहले सत्र की शुरूआत गोसाओन गीत अर्चना, शीतल व रागनी के गायन से हुआ। संचालन डॉ. नीला झा व धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ. रमण झा ने किया।