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योग भारतीय ज्ञान की प्राचीन शैली

दरभंगा। मानव शरीर की समस्त इंद्रियों को जिस माध्यम से साधा जाता है उसे योग कहते है। यह भारतीय ज्ञान

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 12:47 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 01:17 AM (IST)
योग भारतीय ज्ञान की प्राचीन शैली
योग भारतीय ज्ञान की प्राचीन शैली

दरभंगा। मानव शरीर की समस्त इंद्रियों को जिस माध्यम से साधा जाता है उसे योग कहते है। यह भारतीय ज्ञान की प्राचीन शैली है। जिसे हमारे पूर्वजों ने अपनी शारीरिक व्याधियों को दूर करते व मन-मस्तिष्क को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से विकसित किया। दूसरे शब्दो में कहें तो योग विशुद्ध विज्ञान है जो हमें जीवन जीने की पद्धति सीखाता है। सीएम कॉलेज व प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ''हमारे जीवन में योग का महत्व'' विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए डॉ. निर्भय शंकर भारद्वाज ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि योग की कई धुरियां हैं। सिर्फ आसन-प्राणयाम को ही योग नहीं समझना चाहिए। योग के कुल आठ चरण है, जिसमें आसन तीसरा चरण है। उससे पहले यम और नियम के माध्यम से शरीर व मन की शुद्धि करना आवश्यक है। आसन के बाद योग के पांच चरण और भी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सभी जीव-जन्तुओं में ज्ञानेन्द्रियां होती है। परंतु अपने इंद्रियों पर सबका वश नहीं होता है। भंवरा कमल की पंखुड़ियों के मध्य बैठक रसपान करता है और जब कमल की पंखुड़ियां संध्या होते ही बंद होने लगती है तो महसूस करने के पश्चात भी भंवरा कमल में कैद हो जाता है। क्योंकि उसका वश अपनी इंद्रियों पर नहीं रह पाता है। मानव का भी इसी प्रकार अपनी इंद्रियों पर वश नहीं रहता है। लेकिन, जो योग करते है वो अपनी इंद्रियों को वश में कर लेते है। अब योग को विद्यार्थी करियर के रूप में भी चुन सकते हैं। इसमें असीम संभावनाएं है। भारत के कुल 8 विश्वविद्यालयों में योग से संबंधित कोर्स संचालित हो रहे हैं। जिसे करने के बाद देश से लेकर विदेशों में भी करियर बना सकते हैं। उन्होंने लोगों को कई योग आसनों से भी अवगत कराया। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. राजकुमार साह ने कहा कि जिस तरह से मानवों के लिए भोजन, वस्त्र और आवास जरूरी है उसी तरह से मानव जीवन को संतुलित रखने के लिए योग भी आवश्यक है। अध्यक्षता संबोधन में सीएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. वीरेन्द्र कुमार चौधरी ने कहा कि मानव जीवन की शुरूआत ही योग से होती है। योग का सीधा अर्थ है- जोड़ना। तेजी से दौड़ती ¨जदगी में योग एक ऐसा साधन है जो बिना किसी खर्च के मानव शरीर को फिट रखता है। निरंतर योग करने से शरीर सुडौल बनता है। साथ ही हेल्थ भी अच्छा रहता है। कार्यक्रम का संचालन व स्वागत महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. रविन्द्र नाथ चौरसिया ने किया।


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