फिल्मी शू¨टग जैसी दिनदहाड़े रियल'शू¨टग'
दरभंगा। बिजली विभाग के कर्मचारियों के हाथ से 5 लाख कैश लूट की घटना टल जाना इक्तफेका कह सकते हैं, वर
दरभंगा। बिजली विभाग के कर्मचारियों के हाथ से 5 लाख कैश लूट की घटना टल जाना इक्तफेका कह सकते हैं, वरना प्ला¨नग तो तय थी। जिस तरह फिल्मी स्टाइल में बदमाशों ने दिनदहाड़े ओवरब्रिज के उपर पर फाय¨रग की और पूरी प्ला¨नग के साथ लूट की वारदात को अंजाम देने का प्रयास किया उससे तो यहीं लगता है। इतनी बड़ी रकम और बिना सिक्यूरिटी गार्ड के चलना कई सवाल खड़े करता है। विभागीय कर्मचारी व पदाधिकारी भी इस कारण कटघरे में आ जाते हैं। गंगवाड़ा सब-डिविजन से लगभग पांच लाख रुपये लेकर कैशियर व सहायक कैशियर स्कूटी से बैंक निकल गए। किसी ने यह भी नहीं सोचा कि रास्ते में छीना-झपटी भी हो सकती है। आखिर इस तरह की लापरवाही क्यों बरती गई? सब-डिविजन के अफसरों ने रोक-टोक क्यों नहीं की? यही सवाल हर कोई पूछ रहा है। पुलिस ने जब जवाब-तलब करना शुरू किया तो विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी अपनी लापरवाही मानने स्वीकार बैठे। विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र में हथियारबंद बदमाशों ने जिस जगह गोलियां चलाकर लूटने की कोशिश की उससे कुछ ही दूरी पर नाका नंबर-8 अवस्थित है। लिहाजा, यह भी स्पष्ट होता है कि बदमाश किस कदर हौंसला बुलंद थे। उन्हें पुलिस का कोई मलाल नहीं था। ये घटना पुलिस व बिजली विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का संकेत है। गनिमत कहिए आम जनता से वसूले गए पैसे लुटने से बच गए। सरकार को भी राजस्व मद में क्षति पहुंचने से बच गया। विश्वविद्यालय थानाध्यक्ष अमरेंद्र कुमार ठाकुर के अनुसार, कर्मचारियों के पास कैश के रूप में तकरीबन 4 लाख 95 हजार रुपये थे। चूनभाट्ठी ओवरब्रिज पर चढ़ने के साथ ही बदमाशों ने ओवरटेक कर उन्हें रोककर लूटने का प्रयास किया। ठीक पौने चार बजे की आसपास यह घटना हुई।--------------------
मधुबनी का कैशियर तो मुजफ्फरपुर का सहायक कैशियर
जिन दो कर्मचारियों के हाथ से 5 लाख रुपये लूटने का प्रयास हुआ उनमें एक सुधीर कुमार यादव गंगवाड़ा सब-डिविजन का कैशियर है, तो दूसरा शुभम कुमार सहायक कैशियर है। सुधीर मधुबनी जिले के रानगर थाने के भटसिमर गांव का रहने वाला है। वहीं शुभम मुजफ्फरपुर के चंदवारा गांव का बताया गया है। स्कूटी कैशियर खुद चला रहा था तो पैसे वाला थैला लेकर शुभम पीछे सवार था।------------------------
जान पर खेलने के लिए कैशियर की वाहवाही
पैसे लुटे जाने से बचाने के लिए कैशियर व सहायक कैशियर की सूझबूझ की सराहना हो रही है। पुलिस ने भी कहा कि कैशियर ने हिम्मत नहीं दिखाई होती तो पैसा लुट जाना तय था। बदमाशों ने जैसे ही उसे ओवरटेक कर घेरना चाहा, कैशियर ने अपनी स्कूटी रोड पर पलट दी। गिरते हुए भी पैसे का थैला अपने हाथ ले लिया और ओवरब्रिज से नीचे छलांग लगा बैठा। दूसरे कर्मचारी के बारे में पुलिस ने कहा कि वह बदहवाश होकर रोड पर दौड़ने लगा था। इतने में ही बदमाशों ने पिस्टल से दो गोलियां फायर की। कैशियर नीचे कूदा लेकिन वह किसी मकान पर गिरकर बच गया। फिर क्या था गोलियों की तड़तड़ाहट से आसपास भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। बदमाश ब्रिज पर खुद को घिरता हुआ देख भागने में ही भलाई समझे। यह ²श्य किसी फिल्मी शू¨टग की तरह था।
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गंगवाड़ा सब-डिविजन पहले से ही संदेह के घेरे में
पुलिस के सूत्रों के अनुसार, बिजली विभाग का गंगवाड़ा सब-डिविजन ऑफिस पहले से ही संदेह के घेरे में है। दरअसल, पिछले ही साल इस ऑफिस के रेकड़ रुम में रहस्यमय तरीके से आगजनी हुई थी। उस घटना में भारी मात्रा में बिजली बिल और उसके कलेक्शन से संबंधित विपत्र वगैरह आग की भेंट चढ़ गए थे। इस घटना में भी एफआइआर दर्ज है। लेकिन, न तो पुलिस ने न विभागीय स्तर पर ही इस मामले में सच्चाई सामने आ सकी। पिछले कई महीनों से आगजनी की घटना रहस्यमयी बनी हुई है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि विभाग के ही कतिपय कर्मचारियों व अफसरों ने मिलकर उस घटना को अंजाम दिलाया था ताकि, हड़पे गए पैसे का कोई सुराग नहीं मिल सके। दरअसल, हालात ही कुछ ऐसे थे। ऑफिस में ताला लटका था और खिड़की का ग्रिल खिसकाकर बाहर से आग लगाने की बात सामने आई थी। इसी से पूरा मामला संदेहास्पद बन गया था।
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अधिकारी बोले, बड़ी लापरवाही
जिला ग्रामीण विद्युत कार्यपालक अभियंता मनोज कुमार ने यह बात स्वीकार की है कि बिना सिक्यूरिटी के कैश लेकर जाना विभाग की ही लापरवाही है। यह पूछ जाने पर कि क्यों नहीं इस लापरवाही के लिए दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए तथा उनसे जवाब-तलब किया जाए कि क्यों और किन परिस्थितियों में ऐसा किया गया। क्यों नहीं मान लिया जाए कि बिना सिक्यूरिटी कैश लेकर दो कर्मचारियों को बैंक भेजने के पीछे उनकी भी मंशा संदिग्ध है, इस सवाल पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। सिर्फ इतना कहा कि यह जांच का विषय है। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि शनिवार की पहली पारी में भी बैं¨कग के लिए पैसे भेजे गए थे, लेकिन तब चार पहिया गाड़ी इस्तेमाल की गई थी। उस वक्त की रकम इतनी बड़ी नहीं थी।
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बैंक खुद क्यों नहीं रिसीव करते कैश
सरकारी रकम जमा करने के लिए बैंक अपनी तरफ से भी यह सुविधा प्रदान करते हैं कि पैसे जमा करने के लिए लोगों को रिस्क नहीं उठाना पड़े। बैंक अपनी तरफ से सुरक्षा गार्ड के साथ कैश वैन मुहैया कराता है। इतना ही नहीं हाल की घटनाओं के बाद पुलिस प्रशासन ने भी बैं¨कग के दरम्यान सुरक्षा के बंदोबस्त कर रखा है। बावजूद इतनी बड़ी रकम अपने रिस्क पर लेकर चल देना निश्चय ही बड़ा सवाल खड़ा करता है।
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