मानव जीवन का महासमुद्र है लोक कला : डॉ. पतंग
दरभंगा। लोक कला मानव जीवन के लिए महासमुद्र की तरह है। जिस तरह समुद्र मंथन से देवताओं को लाभ मिला उस
दरभंगा। लोक कला मानव जीवन के लिए महासमुद्र की तरह है। जिस तरह समुद्र मंथन से देवताओं को लाभ मिला उसी तरह लोक संगीत के माध्यम से मानव का जीवन जीवंत रहता है। भारत लोक रंग उत्सव के तीसरे दिन बतौर संसाधन पुरूष डॉ. अनिल पतंग के उक्त बातें कहीं। लोक नाट्य के सिद्धांत , रंगकर्मी व लोक कला के विभिन्न आयामों पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। साथ ही जट जटिन, सामा चकेवा आदि मिथिला के प्रसिद्ध लोक कला के संबंध में बारीकी से विचार रखे। चर्चित रंगकर्मी डॉ. महेंद्र नारायण राम ने कहा कि प्रवृत्ति व बुद्धि के संयोग से संस्कृति का निर्माण होता है। लोक संस्कृति को भारतीय इतिहास में जनता का इतिहास बताया गया है। कला जीवन की प्रत्येक पहलू को पूर्णता प्रदान करती है। इसके विकास का क्रम निरंतर चलता रहता है। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. प्रफुल्ल कुमार मौन ने कहा कि लोक जीवन में 16 संस्कार हैं। लेकिन, वर्तमान में महज तीन संस्कार देखने को मिलता है। उन्होंने लोक जीवन में सुबह की पराती, शाम का सांक्ष, जन्म के समय सोहर व मृत्यु समय के निर्गुण गीतों की विस्तार से चर्चा की। कहा कि वर्तमान समय में लोक कला के क्षेत्र में जीवन से जुड़कर कार्य करने की जरूरत है। स्वागत संबोधन पीजी संगीत व नाट्य की विभागाध्यक्ष डॉ. पुष्पम नारायण ने किया। मंच संचालन सागर कुमार ¨सह व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. देव प्रकाश ने किया।
----------