यात्री बसों में सुरक्षा मानकों का उल्लंघन
गुरुवार की शाम पटना से शेखपुरा जा रही बस यात्रियों के साथ जो दिल को दहला देने वाला।
बक्सर। गुरुवार की शाम पटना से शेखपुरा जा रही बस यात्रियों के साथ जो दिल को दहला देने वाला हादसा हुआ है उसने यात्री बसों की सुरक्षा मानकों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल बेहद गंभीर है कि जिन बसों में क्षमता से ज्यादा यात्रियों को ठूंस-ठूंस कर भरा जाता है, उनमें आम आदमी की सुरक्षा को लेकर ऐसे हादसों से बचाव के कहां तक प्रबंध होते हैं और इन सुरक्षा मानकों की क्या कभी जांच की जाती है। इसकी जब स्थानीय स्तर पर पड़ताल की गई तो कई चौंकाने वाले तथ्यों की जानकारी मिली।
आम तौर पर किसी भी रूट की बसों को देखें तो यह बात सहज ही देखने को मिलती है कि यात्री बस हों अथवा कोई टैक्सी सभी में क्षमता से अधिक सवारियां ठूंस-ठूंस कर भरी सहज रूप से देखने को मिल जाएंगी। जिन बसों में अधिकतम 50 सवारियों को बैठाने की क्षमता होती है उनमें 80 से लेकर 100 की संख्या में सवारियों को ठूंस-ठूंस कर भरने के बाद ही चालक वाहन को रवाना करते हैं और तो और नीचे जगह नही होने के बाद धड़ल्ले से बस के ऊपर भी सवारियों को लादकर उनसे पैसे वसूले जाते हैं। इसके प्रति विभाग जहां पूरी तरह उदासीन बना है वही बस मालिकों की खूब चांदी कट रही है।
इमरजेंसी गेट न होने के बराबर
आम तौर पर जितनी भी यात्री बसों का निर्माण होता है उनमें इमरजेंसी दरवाजा जरूर बनाया रहता है। पर शायद ही किसी बस का इमरजेंसी द्वार सहज रूप से खुलने लायक होता है। ऊपर से ज्यादातर लोकल चलने वाली बसों में इमरजेंसी दरवाजे को अतिरिक्त रस्सी अथवा तार से बांध दिया जाता है। ताकि कोई सहज ही खोलने के प्रयास नही करे और तो और नीचे जगह नही होने के बाद धड़ल्ले से बस के ऊपर भी सवारियों को लादकर उनसे पैसे वसूले जाते हैं।
फर्स्ट एड बाक्स में भरे रहते स्टाफ के सामान
आम तौर पर हर यात्री बस में बस मालिक को प्राथमिक उपचार के साधन जरूर रखने हैं। भले ही लंबी दूरी की कुछ बसों में इसकी व्यवस्था देखने को मिल जाए, पर लोकल चलने वाली अधिसंख्य बसों में स्टाफ का सामान भरा नजर आता है। प्राथमिक उपचार संबंधी साधनों का पूर्णत: अभाव दिखाई देता है। ऐसे में कोई हादसा हो जाने पर बाहरी व्यवस्था का ही एकमात्र सहारा रह जाता है।
अग्निशमन यंत्रों का अभाव
लोकल रूट पर चलने वाली शायद ही किसी बस में अग्निशमन यंत्र देखने को मिलता है। लंबी रूट की कुछ बसों में जरूर यह देखने को मिल जाता है, पर लोकल बसों में इसका पूर्णत: अभाव दिखाई देता है। जबकि हर बस में चालक के पीछे और बस के पीछे इसके लिए स्थान बना होता है। ऐसे में कभी कोई हादसा होने पर कैसे भला बचाव की कल्पना की जा सकती है।
स्टाफ को यंत्र चलाने की जानकारी नही
जिन बसों में अग्निशमन यंत्र लगे दिखाई दिए उनके चालक से इसके बारे में जब पूछा गया तो उनका जवाब बेहद चौंकाने वाला रहा। कइ ने तो बताया कि यह क्या होता है इसकी उन्हें कोई जानकारी नही है। बस में लगा है इससे अधिक उन्हें कोई जानकारी नही। कुछ के अनुसार यह तो पता है कि इसका आग लगने पर इस्तेमाल होता है पर इस्तेमाल का तरीका क्या है इसकी न तो उन्हें कोई जानकारी है और न कभी किसी ने उन्हें इस बारे में कुछ भी बताया है। पर लम्बी रूट के कुछ चालकों ने बकायदा इसकी जानकारी होने के दावे प्रस्तुत किए।
विभाग की सुस्ती उजागर
इस संबंध में जब विभाग से इसकी जानकारी ली गई तो स्पष्ट हो गया कि विभागीय सुस्ती ही वास्तव में निरीह बस यात्रियों की जान का काल बनी है। दरअसल विभाग द्वारा सुरक्षा मानकों को लेकर न तो कोई विशेष जांच की जाती है और न इसके प्रति कोई कठोर कदम उठाया जाता है। विभाग की इस सुस्ती का नाजायज फायदा उठाते बस मालिक खुलेआम लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं।